धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—456

एक राजा और नगर सेठ की घनिष्ठ मित्रता थी। नगर सेठ चंदन की लकड़ी का व्यापार करता था। एक दिन नगर सेठ के मन में विचार आया कि अगर राजा मर जाए तो उसके परिजन ढ़ेर सारी चंदन की लकडियां अंतिम संस्कार के लिए खरीदेंगे। इससे काफी मुनाफा होगा। शाम को सेठ राजा से मिलने गया।

नगर सेठ को देखकर राजा के मन में अचानक एक विचार आया कि इस सेठ ने व्यापार से अपार दौलत कमा ली है। कोई ऐसा नियम बनाना चाहिए, जिससे इसका सारा धन राज्य के खजाने में जमा हो जाए। इस तरह दोनों मित्र रोज मिलते और दोनों के मन में एक बार एक दूसरे के प्रति बुरा विचार जरूर आता।

जिस जोश और उत्साह से दोनों पहले मिलते थे, अब उनकी मित्रता में वह जोश व उत्साह नहीं रहा। एक दिन नगर सेठ से रहा नहीं गया। उसने राजा से कहा- ‘पिछले कुछ दिनों से हमारे रिश्ते में ठंडापन आ गया है। ऐसा क्‍यों ?”

राजा ने कहा- “मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। चलो नगर के बाहर जो महात्मा रहते हैं उनसे इसका कारण व हल पूछें।’ दोनों ने महात्मा को अपनी उलझन बताई, तो वे बोले- ‘पहले आप दोनों शुद्ध भाव से मिलते रहे होंगे, किंतु अब संभवत: कुछ बुरे विचार आप दोनों के मन में आ गए हैं।’

नगर सेठ और राजा ने अपने-अपने मन में आने वाले विचारों के बारे में महात्मा को बताया।महात्मा ने कहा- ‘सेठ तुमने यह क्‍यों नहीं सोचा कि राजा चंदन की लकड़ी का एक भव्य महल बनवाएं? इससे तुम्हारा मुनाफा होता। तुमने राजा के बारे में गलत सोचा, इसलिए राजा के मन में भी तुम्हारे लिए कुविचार आया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, विचारों की पवित्रता से ही संबंधों में स्नेह की मिठास बनी रहती है, इसलिए मन के विचार हमेशा शुद्ध रखें।

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