धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—529

सीता माता के स्वभाव की कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें अपने जीवन में उतार लिया जाए तो हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं और जीवन सुख-शांति और प्रेम बना रह सकता है। श्रीराम के जीवन में कई बड़ी-बड़ी समस्याएं आई, देवी सीता ने हर कदम श्रीराम का साथ दिया। सीता जी संदेश दिया है कि मुश्किलों में जीवन साथी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।

माता-पिता के साथ ही अन्य बड़े लोगों का भी करें सम्मान
सीता अपने माता-पिता को पूरा सम्मान देती थी, उनकी सभी बातों का पालन करती थी। माता-पिता की तरह ही सीता जी सास-ससुर का भी सम्मान करती थी। विवाह के बाद सीता स्वयं श्रीराम की देखभाल करती थी, जबकि महल में असंख्य सेवक थे। जब राम को पिता ने वनवास जाने की आज्ञा दी तो सीता भी राम के साथ वन जाने को तैयार हो गई।

वनवास के समय जब देवी सीता के माता-पिता उनसे मिलने आए, तब उन्होंने वहां पहले से आई हुई अपनी सासों से इस बात की आज्ञा ली थी, उसके बाद सीता अपने माता-पिता से मिलने गई।

सीता पतिव्रता धर्म बहुत अच्छी तरह जानती थी, लेकिन जब माता अनसूइया जी ने उनको पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया, तब उन्होंने बिना किसी घमंड के सारी बातें ध्यान से सुनी। सीता ने माता अनसूइया से ये नहीं कहा कि मुझे ये सारी बातें पहले से ही मालूम हैं और मैं इनका पालन भी करती हूं। यहां देवी सीता ने संदेश दिया है कि हमें बड़ों का सम्मान करना चाहिए और उनकी बातों को ध्यान से सुनना चाहिए।

हालात का निडरता के साथ सामना करें
रावण ने सीता का हरण कर लिया था और उन्हें लंका की अशोक वाटिका में कैद रखा था। उस समय सीता को रावण कई प्रलोभन दिए, लेकिन देवी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। इसके बाद रावण ने तरह-तरह से देवी को डराने की कोशिश की, लेकिन सीता ने निड़रता के साथ रावण का सामना किया। रावण से देवता तक डरते थे, लेकिन सीता उससे नहीं डरीं।

एकदम किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए
अशोक वाटिका में हनुमान जी देवी सीता के सामने पहुंचे। उस समय सीता जी ने हनुमान जी पर एकदम भरोसा नहीं किया। जब हनुमान जी ने श्रीराम नाम की मुद्रिका यानी अंगूठी दी और रामकथा सुनाई तब सीता को उन पर भरोसा हुआ। जब सीता को भरोसा हुआ कि हनुमान राम जी के दूत हैं, तब उन्होंने हनुमान जी को अजर-अमर होने का वरदान दिया था।

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