धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-12

अहंकार कई प्रकार के होते हैं, इसके अनेक रुप हैं। बड़प्पन का अहंकार, धन का अहंकार, सुंदरता का अहंकार, परिवार का अहंकार तथा जवानी का अहंकारआदि।

अहंकार किसी भी प्रकार का क्यों न हो, विनाशकारी ही होता है। एक कलश अमृत से भरा है यदि उसमें एक बूंद विष मिल जाए तो वह पूरे का पूरा अमृत विष बन जाता है, पीने के योग्य नहीं रहता, ठीक इसी प्रकार एक अहंकार रुपी नाग आपके सभी गुणों का विनाश कर सकता है, अत: अहंकार रुपी नाग पर नियंत्रण रखो। रावण बहुत ज्ञानी था। लेकिन उसके पतन का कारण उसका अहंकार बना।

जब भी किसी में अहंकार आया है, उसका पतन हुआ है। तारकासुर, हिरण्यकश्यप, रावण, कंस, दुर्योधन जैसे बहुत उदाहरण है। श्रेष्ठ योद्धा और बड़े राजा होने के बावजूद अहंकार के चलते इन सबका पतन हो गया।

अहंकार पर नियंत्रण कर लेने से व्यक्ति में दया और करुणा का जन्म हो जाता है। दयाशील व करुणावान व्यक्तित्व का धनी इस संसार को सूरज के प्रकाश की भांति जगमगाता रहता है। एक समय के बाद उसकी गिनती महापुरुषों में होती है।

महात्मा गांधी का जीवन हमारे सामने जीवंत उदाहरण है। जिन्होंने अपनी हस्ती को मिटाकर पूरे विश्व को अपना बना लिया। जिस इंग्लेंड ने उन्हें यातनाएं दी—आज वहीं देश अपने विद्यार्थियों को उनके जीवन आदर्श के बारे में पढ़ा रहा है। मनुष्य का जीवन ऐसा ही होना चाहिये। शत्रु भी उसके जीवन से शिक्षा लेने के लिए विवश हो जाएं।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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