धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—19

भोलाराम एक प्रसन्नचित छोटा लड़का था हर कोई उसे प्यार करता था, लेकिन उसकी एक कमजोरी भी थी…. भोलाराम कभी भी वर्तमान में नहीं रह सकता था…. उसने जीवन की प्रक्रिया का आनंद लेना नहीं सीखा था…. जब वह स्कूल में होता तो वह बाहर खेलने के स्वप्न देखता…. जब बाहर खेलता तो गर्मियों की छुट्टियों के स्वप्न देखता था.

भोलाराम निरंतर दिवास्वप्न में खोया रहता…. उसके पास उन विशेष क्षणों का आनंद लेने का समय नहीं था जो उसके जीवन में थे…. एक सुबह भोलाराम आपने घर के निकट एक जंगल में घूम रहा था…. थकान महसूस करने पर उसने घास युक्त एक स्थान पर आराम करने का निश्चय किया और अंततः उसे नींद आ गयी…. उसे गहरी नींद में सोये हुए कुछ ही मिनट हुए थे कि उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. भोलाराम …. भोलाराम …. ऊपर से तेज कर्कश आवाज आई…. जैसे ही उसने आँखे खोली वह एक आश्चर्यजनक स्त्री को अपने ऊपर खड़ा हुआ देख कर चकित हो गया…. वह सौ वर्ष से अधिक उम्र की रही होगी…. उसके बाल बर्फ जैसे सफ़ेद थे…. उसके झुर्रियों से भरे हाथ में एक जादुई छोटी गेंद थी जिसके बीचों बीच एक छेद था जिससे बाहर की ओर एक लम्बा सुनहरा धागा लटक रहा था.

भोलाराम …. उसने कहा…. यह तुम्हारे जीवन का धागा है…. यदि तुम इस धागे को थोडा सा खींचोगे तो एक घंटा कुछ ही सेकेंड में बीत जायेगा…. यदि तुम इस जरा जोर से खींचोगे तो पूरा दिन कुछ मिनटों में ही ख़त्म हो जायेगा…. और यदि तुम पूरी शक्ति के साथ इसे खींचोगे तो अनेक वर्ष कुछ दिनों में व्यतीत हो जायेंगें…. भोलाराम इस बात को जानकार बहुत उत्साहित हो गया…. मै इसे अपने पास रखना चाहूँगा यदि यह मुझे मिल जाये तो…. उसने कहा…. वह महिला शीघ्र नीचे पहुंची और उसने वह गेंद उस लड़के को दे दी.

अगले दिन भोलाराम अपनी कक्षा में बैचैनी और बोरियत अनुभव कर रहा था…. तभी उसे अपने नए खिलोने की याद आ गयी…. जैसे ही उसने सुनहरे धागे को खिंचा उसने अपने आप को घर के बगीचे में खेलता हुआ पाया…. जादुई धागे की शक्ति पहचानकर भोलाराम जल्द ही स्कूल जाने वाले लड़के की भूमिका से उकता गया और अब उसकी किशोर बनने की इच्छा हुई…. उस पूर्ण जोश के साथ जो जीवन के उस दौर में होता है…. उसने गेंद बाहर निकाली और धागे को कस कर खींच दिया.

अचानक वह किशोर वय का लड़का बन गया …. लेकिन भोलाराम अब भी संतुष्ट नहीं था…. उसने वर्तमान में सुख पाना और जीवन की हर अवस्था के साधारण आश्चर्यों को खोजना कभी नहीं सीखा था…. इसके बजाय वह प्रौढ़ बनने के स्वप्न देखने लगा…. उसने फिर से धागा खींच दिया.

अब उसने पाया की वह एक मध्यम आयु के प्रौढ़ व्यक्ति में परिवर्तित हो चुका है…. उसकी पत्नी है…. वह बहुत सारे बच्चों से घिरा है…. उसके बाल भूरे हो रहे हैं…. उसकी मां कमजोर और बूढी हो गयी है…. लेकिन वह उन क्षणों को भी ना जी सका…. उसने कभी भी वर्तमान में जीना नहीं सीखा…. इसलिए उसने फिर धागा खींच दिया और परिवर्तन की प्रतीक्षा करने लगा.

अब भोलाराम ने पाया कि वह एक नब्बे वर्ष का बूढ़ा व्यक्ति है…. उसके बाल सफ़ेद हो चुके हैं…. उसकी पत्नी मर चुकी है…. उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं और घर छोड़ के जा चुके हैं.

अपने सम्पूर्ण जीवन में पहली बार भोलाराम को यह बात समझ में आई कि उसने कभी भी जीवन की प्रशंसनीय बातों को समय पर अंगीकार नहीं किया था…. वह बच्चों के साथ कभी भी खेलने नहीं गया…. ना ही कभी चांदनी रातों में घूमने गया…. उसने कभी भी बागीचा नहीं लगाया…. ना ही कभी उत्कृष्ट पुस्तकों को पढ़ा…. उसकी पूरी जिन्दगी जल्दबाजी में थी…. उसने रुक कर मार्ग में अच्छाइयों को नहीं देखा.

भोलाराम यह जान कर दुखी हो गया …. उसने जंगल में जाने का निश्चय किया…. जहाँ वह लड़कपन में जाया करता था…. अपने को तरोताजा और उत्साहपूर्ण करने के लिए…. वह एक बार फिर घास के मैदान में सो गया…. एक बार फिर उसने वोही आवाज सुनी…. भोलाराम …. भोलाराम …. उसकी आँख खुली तो वह देखता है वही स्त्री वहां खड़ी थी…. उसने भोलाराम से पूछा कि उसने उसके उपहार का आनंद कैसे लिया…. भोलाराम ने स्पष्ट उत्तर दिया…. पहले तो मुझे यह मनोरंजक लगा लेकिन अब मुझे इससे घृणा हो गयी है…. मेरा सम्पूर्ण जीवन बिना कोई सुख भोगे मेरी आँखों के सामने से निकल गया…. मैंने जीवन जीने का अवसर खो दिया है…. तुम बहुत कृतघ्न हो…. उस स्त्री ने कहा …. फिर भी मै तुम्हारी एक अंतिम इच्छा पूरी करुँगी.

भोलाराम ने एक क्षण के लिए सोचा…. और कहा…. मै फिर से वापस स्कूल जाने वाला लड़का बनना चाहता हूँ…. वह फिर गहरी नींद में सो गया…. फिर उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. आँख खोलने पर देखा तो उसकी मां उसे पुकार रही थी…. वो उसके स्कूल के लिए देर होने के कारण पुकार रही थी….भोलाराम समझ गया कि वह वापस अपने पुराने जीवन में आ गया है…. वह परिपूर्ण जीवन जीने लगा…. जिसमे बहुत से आनंद…. हर्ष और विजयोत्सव थे…. लेकिन यह तभी संभव हो पाया जब वह वर्तमान में जीने लगा.

भोलाराम को तो दुबारा जीने का मौका मिल गया यह कहानी में तो संभव है लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि वास्तविक जीवन में मौके बार बार नहीं मिलते…. जीवन जीने के मौके बार बार नहीं मिलते…. आज भी हमारे पास मौका है…. ध्यान रहे हम इसे खो ना दें.

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि डॉक्टर श्री श्री 108 श्री सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—116

स्वामी राजदास : गुरु छीन लेगा

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 372

Jeewan Aadhar Editor Desk