धर्म

स्वामी राजदास : सदुपयोग

नरसी के पड़ोस में एक आदमी आलाप भर रहा था। आधी रात को नरसी उसके पास गया और उसने कहा कि आप को तो अपने संगीत का कार्यक्रम लंदन, मास्को,पेकिंग, वहां देना चाहिए। उस आदमी ने कहा कि नरसी,मैंने सोचा भी नहीं कि तुम संगीत के इतने प्रेमी हो। क्या तुम्हें संगीत इतना पंसद आता है? उसने कहा कि नहीं, तुम वहां चले जाओंगे तो कम से कम तुम्हारी आवाज हमे सुनायी न पड़ेगी।
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तुम्हारे चारों ओर जो चल रहा है संगीत के नाम से, वह विसंगीत है। उसकी आवाज तुम्हें सुनायी ही न पड़े तो अच्छा है। तुम वैसे ही विसंगीत से भरे हो। काफी वैसे ही जहर तुमसें भरा है। और उस जहर को उठाने की सब चेष्ठाएं चल रही है। नाच रहे हैं लोग, तो वासना को जगाने के लिए, गा रहें है लोग तो वासना को जगाने के लिए।
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पर जिस चीज से वासना जाग सकती है। उसी चीज से वासना सो भी सकती है। इसको याद रखना। जो चीज जहर है,वही अमृत हो सकती है। उपयोग पर निर्भर है। उपयोग पर परिणाम निर्भर है। जहर औषधि बन जाती है। और जहर मृत्यु भी बन जाता है। जहर मौत से बचाता भी है, और मौत में ले जा भी सकता है। इस लिए चीज का सदुपयोग करना सीखों।
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Jeewan Aadhar Editor Desk