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सत्यार्थप्रकाश के अंश—07

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जो प्रत्यक्षपूर्वक अर्थात् जिसका कोई एक देश सम्पूर्ण द्रव्य किसी स्थान वा काल में प्रत्यक्ष हुआ हो उसका दूर देश में सहचारी एक देश के प्रत्यक्ष होने से अदृष्ट अवयवी का ज्ञान होने को अनुमान कहते हैं। जैसे पुत्र को देख के पिता, पर्वतादि में धूम को देख के अग्रि, जगत् में सुख दुख देख के पूर्वजन्म का ज्ञान होता है। वह अनुमान तीन प्रकार का है। एक पूर्ववत् जैसे बादलों को देख के वर्षा, विवाह को देख के सन्तानोत्पत्ति , पढ़ते हुए विद्यार्थियों को देख के विद्या होने का निश्चय होता है, इत्यादि जहां-जहां कारण को देख के कार्य का ज्ञान हो वह पूर्ववत्। दूसरा शेषवत् अर्थात् जहां कार्य को देख के कारण का ज्ञान हो। जैसे नदी के प्रवाह की बढ़ती देख के ऊपर हुई वर्षा का, पुत्र को देख के पिता का, सृष्टि को देख के सुख दुख का ज्ञान होता है, इसी को शेषवत् कहते हैं, तीसरा समान्यतोदृष्ट जो कोई किसी का कार्य कासरण न हो परन्तु किसी प्रकार का साध्मर्य एक दूसरे के साथ हो जैसे कोई भी विना चले दूसरे स्थान को नहीं जा सकता वैसे ही दूसरों का भी स्थानान्तर में जाना विना गमन के कभी नहीं हो सकता। अनुमान शब्द का अर्थ यही है कि अनु अर्थात् प्रत्यक्षस्य पश्चान्मीयते ज्ञायते येन तदनुमानम् जो प्रत्यक्ष के पश्चात् उत्पन्न हो जैसे धूम के प्रत्यक्ष देखे बिना अदृष्ट अग्रि का ज्ञान कभी नहीं हो सकता।
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