धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—637

एक बार की बात है कि एक संत एक वृक्ष के नीचे अपनी साधना में लीन थे कि उसी वृक्ष पर कुछ पक्षियों का झुण्ड आकर बैठा और करुणा क्रदन करने लगा उनका करुणा क्रदन सुनकर संत बोले कि हे पक्षियों! इतने क्यों परेशान हो ?

पक्षी अचंभित होते हुए कि एक संत ने हमारी वाणी समझ ली उनको प्रणाम कर उनसे बोले कि महाराज हम अपने जीवन में बहुत दुखी हो गए है और उस दुःख का कारण है हमारे कुटुम्भियों और परिजनों से एक व्याघ्र के कारण वियोग।

संत ने पूछा कि यह व्याघ्र कि क्या कथा है ? पक्षी बोले महाराज कि एक व्याघ्र आता है जाल बिछाता है दाना डालता है और जो उसके जाल में फँस जाते है उनको ले जाकर बेच देता है, इससे बचने का कोई उपाय बताए।

संत मुस्कुरा कर बोले कि तुम लोगो की समस्या का समाधान हो सकता है। पक्षी बोले महाराज समस्या का समाधान कैसे हो सकता है कृपया बताये।

संत बोले कि जब व्याघ्र आये जाल बिछाये दाना डाले तो तुम्हें उसे नहीं चुगना है और इसी ज्ञान का अभ्यास करना है। पक्षी प्रसन्न होते हुए बोले बस महाराज इतना ही करना है। महाराज बोले हाँ, बस इतना ही करना है। उसके बाद उन्होंने अपने कुटुम्ब को यह रटवाना शुरू कर दिया कि

व्याघ्र आएगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा और हमें नहीं चुगना है।

व्याघ्र आएगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा और हमें नहीं चुगना है।

व्याघ्र आएगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा और हमें नहीं चुगना है।

इस ज्ञान को रटते—रटते वह पक्षी वहाँ से उड़ कर अपने अपने स्थान को चले गए। कुछ समय पश्चात संत महात्मा अपने रास्ते में जब जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक व्याघ्र बहुत सारे पक्षियों को जाल में लेकर जा रहा है और पक्षी वही रटते हुए जा रहे थे कि व्याघ्र आएगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा और हमें नहीं चुगना है।

संत को देखते ही पक्षी उन्हें प्रणाम करते हुए पूछने लगे कि महाराज आपका समाधान तो निष्फल हो गया, हमने तो आपका रटाया हुआ – व्याघ्र आएगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा और हमें नहीं चुगना है, ही बोल रहे थे और अब भी वही रटते हुए जा रहे है तो भी इसका कोई लाभ नहीं मिला।

संत करुणापूर्वक बोले कि मूर्खो! तुम्हें यह ज्ञान मात्र रटने के लिए नहीं बल्कि अभ्यास के लिए दिया था। जो ज्ञान अभ्यास में नहीं लिया गया वह व्यर्थ हुआ। तुम लोग उस ज्ञान को रट रहे थे, किंचित अभ्यास में लिया होता तो व्याघ्र के जाल में नहीं फँसते।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें जो भी ज्ञान मिलता है—उसे रटने की जगह अभ्यास में लेने का प्रयास करना चाहिए। जब ज्ञान को अभ्यास में लाना आरंभ करते हैं तो ही ज्ञान का सार्थक लाभ हमें मिल पाता है।

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