मैंने सुना है, एक कृपण आदमी था। उसके पास सोने की ईंट थीं। वे उसने अपनी तिजोड़ी में रख छोड़ी थीं। भूखा-प्यासा, रूखा-सूखा खाता था। बस तिजोड़ी खोल कर अपनी सोने क ईंटों को देख लेता था। उसका बेटा जवान हुआ। उसने देखा, यह भी क्या पागलपन है। हमें खाने को नहीं, पीने के नहीं, ओढऩे का वस्त्र नहीं,घर-द्वार ढग़ का नहीं-और हमारे पास इतना धन है और बाप कुल इतना करता है कि तिजोड़ी खोल कर जैसे मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन करते है, ऐसे सोने की ईंट का दर्शन लेता है, प्रसन्न होकर, फिर तिजोड़ी बंद कर देता है। ये जो सोने की ईंट हैं, इनका मूल्य केवल संभावना में है, पाटेशियल है। अगर इनका उपयोग करो तो ही मूल्य है। अगर उपयोग न करो तो सोने की ईंट रखी है तुमने तिजोड़ी में कि पत्थर की ईंटे रखी है, क्या फर्क पड़ता है?जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
बेटे ने एक होशियारी की। उसने पीतल की ईंटे बनवाई, सोने का पालिस चढवाया और तिजोड़ी में बदल दीं। बाप वही करता रहा। रोज खाले तिजोड़ी- अब तो पीतल की ईंट थी-नमस्कार कर ले। बड़ा प्रसन्न हो जाये। बाप को तो कोई फर्क ही नहीं पड़ा। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
धन तभी पता चलता है कि धन है जब तुम उपयोग करो, अन्यथा निर्धन और धनी में क्या फर्क है? तुम अगर करोड़ो रूपये भी अपनी जमीन में गढ़ा कर बैठे हो ओर भीख मांग रहे हो, तो तुम में और उस भिखमंगे में क्या फर्क है जिसके पास एक पैसा नहीं है? धन का मूल्य उपयोग में है। धन क मूल्य धन में नहीं है, उपयोग में है, उसके विनियम में,एक्स्चेन्ज में है। धन जितना चले उतना उपयोगी हो जाता है। जितना तुम उसका रूपांतरण करो उतनी ही उपयोगिता बढ़ती जाती है।
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