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सत्यार्थप्रकाश के अंश—09

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जिस की श्रोत्रों से प्राप्ति जो बुद्धि से ग्रहण करने योग्य और प्रयोग से प्रकाशित तथा आकाश जिस का देश है वह शब्द कहाता है। नेत्र से जिस का ग्रहण हो वह रूप,जिह्वा से जिस मिष्टादि अनेक प्रकार का ग्रहण होता है वह रस,नासिक से जिस का ग्रहण से होता है वह गन्ध,त्वचा से जिसका ग्रहण होता है वह स्र्पश, एक द्वि इत्यादि गणना जिस से होती है वह संख्या, जिस से तौल अर्थात् हल्का भारी विदित होता है वह परिणाम , एक दूसरे से अलग होना वह पृथक्त्व, एक दूसरे के साथ मिलना वह संयोग, एक दूसरे से मिले हुए अनेक टूकड़े होना वह विभाग, इस से यह पर है,उस से यह उरे है वह अपर, जिस से अच्छे,बूरे का ज्ञान होता है वह बुद्धि, आनन्द का नाम सुख, क्लेश का नाम दु:ख, इच्छा राग, विरोध, अनेक प्रकार का बल पुरूषार्थ, भारीपन,पिघल जाना,प्रीति और चिकनापन,दूसरे के योग से वासना का होना, न्यायाचरण और कठिनत्वादि अन्यायाचरण और कठिनता से विरूद्ध कोमलता से 24 गुण हैं।
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