लखनऊ,
मेट्रो प्रॉजेक्ट दूसरे विभागों के लिए कई मायनों में मिसाल बनकर सामने आ रहा है। वक्त पर काम पूरा करने और पानी बचाने के उपायों के साथ यह प्रॉजेक्ट पर्यावरण संरक्षण में भी मील का पत्थर साबित हो रहा है। इस प्रॉजेक्ट में टीपीनगर डिपो और हजरतगंज तक के रूट में 981 पेड़ काम के आड़े आ रहे थे, लेकिन अनुमति होने के बाद भी इन्हें काटा नहीं गया। मेट्रो अधिकारियों ने इनमें 270 पेड़ जड़ सहित निकालकर दूसरे जगह लगा दिए, जबकि बाकी 711 पेड़ों के लिए जगह-जगह डिजाइन भी बदल दी।
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मेट्रो टीपीनगर डिपो, प्रियॉरिटी रूट और अंडरग्राउंड रूट में कई बड़े पेड़ों के कारण काम रुकने की आशंका थी। मेट्रो अधिकारियों ने इनमें से भारी भरकम पेड़ों को जड़ समेत निकालकर दूसरी जगह रोपा। वनाधिकारी मोहन तिवारी ने बताया कि निर्माण से पहले ही सर्वे कर पेड़ों की नम्बरिंग कर ली गई थी। इसमें पेड़ों की उम्र, उनकी प्रजाति और मौसम देखकर ट्रांसलोकेट करने का फैसला किया गया। उन्होंने बताया कि कई पेड़ों का वजन 30 टन तक था। इन्हें क्रेन से दूसरी जगह ले जाया गया। नई जगह लगाए गए सभी पेड़ अब हरे-भरे हैं। उन्होंने बताया कि मजबूरी में काटे 19 पेड़ काटे।
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चारबाग से हजरतगंज तक के अंडरग्राउंड रूट पर पीपल, बरगद, कचनार, मौलश्री, चितवन, टीक, कंजी और सेमल के 206 पेड़ों के कारण काम रुक रहा था। इन्हें काटना आसान था, लेकिन मेट्रो अधिकारियों ने काटने के बजाय 30 पेड़ों के जड़ सहित निकालकर दूसरी जगह लगाना (ट्रांसलोकेट करना) बेहतर समझा। ये सभी पेड़ यहां से 11 किमी दूर टीपीनगर डिपो में लगाए गए हैं। इनके अलावा 157 पेड़ डिजाइन में बदलाव कर बचाए गए, हालांकि इस दौरान 19 पेड़ काटने पड़े। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
इतना आसान भी नहीं ट्रांसलोकेशन
एक पेड़ को जड़ समेत निकालकर दूसरी जगह लगाने में 40 दिन लगता है। एएम पर्यावरण चेतन त्यागी ने बताया कि सबसे पहले ट्रांसलोकेट किए जा सकने वाले पेड़ों की पहचान होती है।
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