धर्म

सत्यार्थ प्रकाश के अंश—19

सब सेना और सेनापतियों के ऊपर राज्याधिकार,दण्ड देने की व्यवस्था के सब कार्यो का आधिपत्य और सब के ऊपर वर्तमान सर्वाधीश राज्यधिकार इन चारों अधिकारों में सम्पूर्ण वेद शास्त्रों में प्रवीण पूर्ण विद्यावाले धर्मात्मा जितेन्द्रिय सुशील जनों को स्थापित करना चाहिये अर्थात् मुख्य सेनापति,मुख्य राज्याधिकारी,मुख्य न्यायाधीश ,प्रधान और राजा ये चार सब विद्याओं में पूर्ण विद्वान् होने चाहियें। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
न्यून से न्यून दश विद्वानों अथव बहुत न्यून हों तो विद्वानों की सभा जैसी, व्यवस्था, करे उस धर्म अर्थात् व्यवस्था का उल्लंघन कोई भी न करे।
इस सभा में चारों वेद, हैतुक अर्थात् कारण अकारण का ज्ञाता न्यायाशास्त्र,निरूक्त धर्मशास्त्र आदि के वेत्ता विद्वान् सभासद् हों परन्तु वे ब्रह्मचारी,गृहस्थ और वानप्रस्थ हों तब यह सभा कि जिसमें दश विद्वानों से न्यून होने चाहिये। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार

और जिस सभा में ऋग्वेद,यजुर्वेद,समावेद,के जानने वाले तीन सभासद् होके व्यवस्था करें उस सभा की की हुई व्यवस्था को भी कोई उल्लघंन न करे।
यदि वह अकेला सब वेदों का जाननेहारा द्विजों में उत्तम संन्यासी जिस धर्म की व्यवस्था करें वही श्रेष्ठ धर्म है क्योंकि अज्ञानियों के सहस्त्रों लाखों क्रोड़ो मिल के जो व्यवस्था करे उस को कभी न मानना चाहिये। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
जो ब्रह्मचर्य सत्यभाषाणादि व्रत वेदविद्या वा विचार से रहित जन्ममात्र से शुद्रवत् वर्तमान हैं उन शहस्त्रों मनुष्यों के मिलने से भी सभा नहीं कहाती। जो आविद्यायुक्त मूर्ख वेदों के न जाननेवाले मनुष्य जिस धर्म को कहें उस को कभी न मानना चाहिये क्योंकि जो मूर्खों के कहे हुए धर्म के अनुसार चलते हैं उनके पीछे सैंकड़ो प्रकार के पाप लग जाते हैं। इसलिये तीनों अर्थात् विद्यासभा,धर्मसभा और राज्यसभाओं में मूर्खो को कभी भरती न करे। किन्तु सदा विद्वान् और धार्मिक पुरूषों का स्थापन करें।
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