नई दिल्ली,
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेजेंटा लाइन मेट्रो की शुरुआत करेंगे। साउथ दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाली मेजेंटा लाइन मेट्रो के उद्घाटन कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न बुलाए जाने पर आम आदमी पार्टी ने नाराज़गी ज़ाहिर की है। ‘आप’ नेताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी के सामने दिल्ली सरकार का 50 प्रतिशत हिस्सा लौटने की मांग भी रख दी है।
तीसरे फेज़ में मेजेंटा लाइन जनकपुरी वेस्ट से नोएडा के बॉटनिकल गार्डन के बीच चलेगी, लेकिन शुरुआत में ये कालकाजी मंदिर से बॉटनिकल गार्डन के बीच चलाई जा रही है। 25 दिसंबर को नई लाइन का उदघाटन कार्यक्रम नोएडा में रखा गया है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंच रहे हैं।
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हालांकि दिलचस्प बात यह है कि मेट्रो में 50 प्रतिशत की साझेदारी निभाने वाली आम आदमी पार्टी सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल मेजेंटा लाइन के उद्घाटन में नज़र नहीं आएंगे। दिल्ली सीएम को निमंत्रण न मिलने की जानकरी मिलते ही ‘आप’ नेता केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए हैं।
आप नेता संजय सिंह का कहना है कि ‘राजनीतिक विरोध की वजह से इतनी नफरत बढ़ गयी है कि प्रधानमंत्री एक चुने हुए मुख्यमंत्री के संग बैठना पसंद नहीं कर रहे हैं। इससे पहले जब फरीदाबाद से जब मेट्रो का उद्घाटन हुआ था, तब भी अरविंद केजरीवाल को नहीं बुलाया गया था।’
उधर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने एक कदम आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अजीब मांग रख दी है। सौरभ का कहना है कि ‘फेज़ 3 में 46 हजार करोड़ खर्च हुए हैं और उसमें से केंद्र सरकार ने महज़ 460 करोड़ खर्च किए हैं। प्रधानमंत्री मोदी को तमाम हिस्सेदारों का 40 हजार करोड़ रुपए लौटा दें और ख़ुद उदघाटन करें। पीएम मोदी को फेज 1 और फेज 2 का खर्च भी लौटा दें ताकि पुराने तमाम स्टेशन का उदघाटन भी केंद्र सरकार खुद कर सके।’
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सौरभ भारद्वाज ने कहा “70 सालों से प्रोटोकॉल चला आ रहा है कि जब प्रधानमंत्री आते हैं तो मंच पर मुख्यमंत्री को बुलाया जाता है, क्योंकि केंद्र का खजाना राज्य सरकारें ही भरती हैं। मेट्रो के अंदर अनोखी स्थिति है, केंद्र और राज्य सरकार की बराबरी को हिस्सेदारी है, इसके बावजूद उदघाटन में केंद्र ने चुने हुए मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया ताकि पूरा क्रेडिट ख़ुद ले सकें और जनता के बीच वाहवाही लूट सकें।
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आपको बता दें कि इससे पहले जब अक्टूबर 2017 में मेट्रो का किराया बढ़ा था तब केजरीवाल सरकार और मोदी सरकार के बीच काफी खींचतान देखने मिली थी। हालांकि हैरानी की बात यह है कि कभी केंद्र और राज्य के बीच साझेदारी की मिसाल पेश करने वाली दिल्ली मेट्रो भी अब एक राजनीतिक हथियार बन गयी है।
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