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तीन तलाक बिल का फैंसला आज, राज्यसभा में कांग्रेस ने बदल लिया अपना रुप

नई दिल्ली (आरती शर्मा)
तीन तलाक बिल शीतकालीन सत्र में पास करवाने के लिए सरकार के पास आज आखिरी मौका है। सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, ऐसे में सरकार पूरी तरह से विपक्ष पर निर्भर है। ऐसे में देखना होगा की सरकार बिल को पास करवाने में कामयाब हो पाती है या नहीं।
कांग्रेस ने बदल लिया रुप
लोकसभा में कांग्रेस ने सरकार का साथ दिया था। उस समय कांग्रेस ने ना कोई शर्त रखी और ना ही कोई ना—नकुर की। लेकिन अब बिल के राज्यसभा में आते ही कांग्रेस का रुप बदल गया है। कांग्रेस अन्य दलों के साथ बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग कर रही है।
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सरकार की सेलेक्ट कमेटी को ‘ना’
सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि बिल को सेलेक्‍ट कमेटी (प्रवर समिति) के पास नहीं भेजा जा सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर रखा है और कोर्ट के जजों ने छह महीने के लिए तीन तलाक पर रोक लगाई थी और वो अवधि 22 फरवरी को पूरी हो रही है, जबकि विपक्ष का कहना है कि 6 महीने की अवधि बिल पास होने की तारीख से मानी जाएगी।
क्या है सेलेक्‍ट कमेटी
संसद में 2 तरह की कमिटियों यानी संसदीय समितियां काम करती हैं जिनका गठन सरकारी कामकाज पर प्रभावी नियंत्रण बनाए रखने के लिए भी किया जाता है।
संसदीय समितियां दो तरह की होती हैं, तदर्थ और स्थायी। तदर्थ समिति का गठन किसी खास मामले या उद्देश्य के लिए किया जाता है, उसका अस्तित्व तभी तक कायम रहता है, जब तक वह इस मामले में अपना काम पूरा कर रिपोर्ट सदन को सौंप नहीं दे। जबकि स्थायी समिति का काम फिक्स होता है। लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, विशेषाधिकार समिति और सरकारी आश्वासन समिति जैसी कई तरह की स्थायी समितियां होती हैं। विभागीय आधारित 24 तरह की स्थायी समितियां होती हैं जिसमें 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा के सदस्य होते हैं। हर समिति में सदस्यों की संख्या अलग-अलग होती है। इसके अलावा अन्य तरह की स्थायी समिति भी होती हैं।
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प्रवर समिति और संयुक्त समिति के रूप में तदर्थ समिति दो प्रकार की होती हैं, इन दोनों ही समितियों का कार्य सदन में पेश बिल (विधेयकों) पर विचार करना होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि सदन की ओर से इन दोनों समितियों के पास सभी विधेयकों पर विचार के लिए भेजा ही जाए।
प्रवर समिति भेजे गए बिल के सभी मामलों पर गंभीरता से विचार करती है। विचार के बाद समिति किसी भी मामले पर अपने सुझाव दे सकती है। यह समिति बिल से संबंधित संगठनों, विशेषज्ञों और अन्य लोगों से उनकी राय ले सकती है। बिल पर गहन विचार-विमर्श के बाद प्रवर समिति अपने संशोधनों और सुझावों के साथ सदन को रिपोर्ट सौंपती है। अगर समिति का कोई सदस्य संबंधित बिल पर असहमत होता है तो उसकी असहमति भी रिपोर्ट के साथ भेजी जा सकती है।
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दोनों सदनों में बिल का पास होना जरूरी
अगर तीन तलाक से जुड़ा यह बिल विपक्ष प्रवर समिति के पास भिजवाने को लेकर अडी रही तो सरकार इसे संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में पारित नहीं करवा सकेगी। वैसे भी शीत सत्र में आज आखिरी दिन है। किसी भी बिल को कानून का रूप लेने के लिए इसे दोनों सदनों से पास करवाना जरूरी होता है।
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