धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—45

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शिवपुराण में शिव ने इच्छा की कि मैं सृष्टि कंरू तो एक नारायण जलाशय को उत्पन्न कर उस की नाभि से कमल,कमल में से ब्रह्मा उत्पन्न हुआ। उस ने देखा कि सब जलमय है। जल की अंजलि उठा देख जल में पटक दी। उस से एक बुद्बुदा उठा और बद्बुदे में से एक पुरूष उत्पन्न हुआ। उस ने ब्रह्मा से कही कि हे पुत्र। सृष्टि उत्पन्न कर। ब्रह्मा ने उस से कहा कि मैं तेरा पुत्र नहीं किन्तु तू मेरा पुत्र है। उन में विवाद हुआ और दिव्यसहस्त्रर्षपपर्यन्त दोनों जल पर लड़ते रहे। तब महादेव ने विचार किया कि जिन को मैंने सृष्टि करने के लिए भेजा था वे दोनों आपस में लड़ झगड़ रहे हैं। तब उन दोनों के बीच में से एक तेजोमय लिगं उत्पन्न हुआ और वह शीघ्र आकाश में चला गया। उस को देख के दोनों साश्चर्य हो गये। विचारा कि इस का आदि अन्त लेना चाहिए। जो आदि अन्त लेके शीघ्र आवे वह पिता और पीछे वा थाह लेके न आवे वह पुत्र कहावे। विष्णु कूर्म का स्वरूप धर के नीचे को चला और ब्रह्मा हंस का शरीर धारण करके ऊपर उड़ा। दोनों मनोवेग से चले। दिव्यसहस्त्रवर्ष पय्र्यन्त दोनों चलते रहे तो भी उस का अन्त न पाया। तब नीचे से ऊपर विष्णु और ऊपर से नीचे ब्रह्मा चला। ब्रह्मा ने सोचा कि जो वह छेड़ा ले आया होगा तो मुझ को पुत्र बनना पड़ेगा। ऐसा सोच रहा था उसी समय एक गाय और केतकी का वृक्ष ऊपर से उतर आया। उन से ब्रह्मा ने पूछा कि तुम कहां से आये हो? उन्होंने कहा कि हम सहस्त्र वषों में इस लिंग के आधार से चले आते हैं। ब्रह्मा ने पूछा कि इस लिंग का थाह है या नहीं? उन्होंने कहा नहीं। ब्रह्मा ने उन से कहा कि तुम हमारे साथ चलो और ऐसी साक्षी देओ कि मैं इस लिग के शिर पर दुध की धारा वर्षाती थी और वृक्ष कहे कि मैं फूल वर्षाता था,ऐसा साक्षी देओ तो मैं तुम को ठिकाने पर ले चलूं। उन्होंने कहा कि हम झूठी साक्षी नहीं देंगे। तब ब्रह्मा कुपित होकर बोला जो साक्षी नहीं देओगे तो मैं तुम को अभी भस्म कर देता हूं। तब दोनों ने डर के कहा कि हम जैसी तुम कहते हो वैसी साक्षी देवेंगे। तब तीनों नीचे की ओर चले।
विष्णु प्रथम ही आ गये थे,ब्राह्मा भी पहुंचा। विष्णु से पूछा कि तू थाह ले आया वा नहीं? तब विष्णु बोला मुझ को इसका थाह नहीं मिला। ब्रह्मा ने कहा मैं ले आया। विष्णु ने कहा कोई साक्ष देओ। तब गाय और वृक्ष ने साक्षी दी। हम दोनों लिंग के सिर पर थे। तब लिंग में से शब्द निकला और वृक्ष को शाप दे दिया कि जिस से तू झूठ बोला इसलिए तेरा फूल मुझ पर वा अन्य देवता पर जगत् में कही नहीं चढ़ेगा और जो कोई चढ़ावेगा उस का सत्यानाश होगा। गाय को शाप दिया जिस मुख से तू झूठ बोली उसी से विष्ठा खाया करेगी। तेरे मुख की कोई पूजा नहीं करेगा किन्तु पूछ की करेंगे। और ब्रह्मा को शाप दिया कि तू मिथ्या बोला इसलिए तेरी पूजा संसार में कहीं न होगी। और विष्णु को वर दिया कि तू सत्य बोला इस से तेरी पूजा सर्वत्र होगी।
पुन: दोनों ने ङ्क्षलग की स्तुति की। उस से प्रसन्न होकर उस ङ्क्षलग से एक जटाजूट मूर्ति निकल आई और कहा कि तुम को मैंने सृष्टि करने के लिए भेजा था, झगड़े में क्यों लगे रहें? ब्रह्मा और विष्णु ने कहा कि हम बिना सामग्री सृष्टि कहां से करे। तब महादेव ने अपनी जटा में से एक भस्म का गोला निकाल कर दिया कि जाओ इस में से सब सृष्टि बनाओ।
भला कोई इन पुराणों के बनाने वालों से पूछे कि जब सृष्टि तत्व और पञ्चमहाभूत भी नहीं थे तो ब्रह्मा,विष्णु,महादेव शरीर, जल,कमल, लिंग गाय, और केतकी का वृक्ष और भस्म गोला क्या तुम्हारे बाबा के घर में से आ गिरे?
वैसे ही भागवत में विष्णु की नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा और ब्रह्मा के दहिने पग के अंगूठे से स्वायम्भव और बायें अंगूठे से शतरूपा राणी,ललाट से रूद्र और मरीचि आदि दश पुत्र, उन से दक्ष प्रजापति , उन की तरह लड़कियों का विवाह कश्यप से, उनमें से दिति से दैत्य,दनु से दानव ,अदिति से आदित्य विनता से पक्षी,कदू्र से सर्प,सरमा से कुते,स्याल आदि और अन्य स्त्रियों से हाथी, घोड़े, ऊंट, गधा,भैंसा, घास, फूस, वृक्ष आदि कांटे सहित उत्पन्न हो गये।
वाह रे वाह भागवत के बनाने वाले लालभुजक्कड़़? क्या कहना तुझ को ऐसी-ऐसी मिथ्या बातें लिखने में तनिक भी लज्जा और शर्म न आई,निपट अन्धा ही बन गया। स्त्री पुरूष के राजवीर्य के संयोग से मनुष्य तो बनते ही है परमेश्वर की सृष्टिक्रम के विरूद्ध, पशु,पक्षी,सर्प आदि भी उत्पन्न कर दिये? और हाथी ऊंट,सिंह कुत्ता,गधा और वृक्षदि का स्त्री के गर्भाश्य में स्थित होने का अवकाश कहां हो सकता हैं? और सिंह आदि उत्पन्न होकर अपने मां बाप को क्यों नहीं खा गये? और मनुष्य-शरीर से पशु पक्षी वृक्षादि का उत्पन्न होना क्यों कर सम्भव हो सकता हंै?
शोक है, इन लोगों की रची हुई इस महा असम्भव लीला पर जिस ने संसार को अभी तक भ्रमा रखा है। भला इन महाझूठ बातों को वे अन्धे पोप और बाहर भीतर की फूटीं आंखों वाले उन के चेले सुनते और मानते हैं। बड़े ही आश्चर्य की बात हैं कि ये मनुष्य हैं वा अन्य कोई। इन भागवातादि पुराणों के बनाने हारे जन्मतें ही क्यों नहीं गर्भ में नष्ट हो गये? वा जन्मते समय मर क्यों न गये? क्योंकि इन पापों से बचते तो आर्यावत्र्त देश दु:खों से बच जाता।
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