संभावना है अंनत तुम्हारी। अपनी संभावना को सत्य बनाया जा सकता है। संकल्प करो। इस अभीप्सा को उठने दो। इस अभीप्सा पर सब निछावर करो, तो देर नहीं लगेगी, और एक बार स्वाद आ जाए उस मलयगिरी की सुगंध का, उस पवन का,तब तुम हैरान होओगे कि कैसे इतने दिन उलझे रहे। कैसे इतने दिन छोटे-छोटे खेल-खिलोनों में पड़े रहे। कैसे पत्थर इक_े करते रहे। तुम्हें हैरानी होगी- अपने पर हैरानी होगी,अपने अतीत पर हैरानी होगी। और तुम्हें चारों तरफ लोगों को देख कर हैरानी होगी कि लोग उलझे क्यों हैं।
ज्ञानियों को यही सबसे बड़ी हैरानी रही है। खुद अपना अतीत बेबूझ हो गया कि हम इतने दिन तक कैसे चूके। और फिर चारों तरफ लोगों को चूकते देखते हैं। उन्हें भरोसा ही नहीं आता। समझ में नहीं पड़ता लोग कैसे चूके जा रहे हंै। जिसको खोजते हैं,उसी को चूक रहे हैं- और अपने ही कारण चूक रहे हैं।
कौन है ऐसा इस जगत में, जो आंनद नहीं चाहता? और कौन है ऐसा इस जगत में जो आनंद उपलब्ध कर पाता है? बड़ी मुश्किल से कभी एक-आध-करोड़ में। क्या हो जाता है? आंनद सब चाहते हैं,मगर जो करते है वह आनद के विपरीत है। पश्चिम जाना चाहते हैं और पूरब जाते हैं। दिन को लाना चाहते हैं और रात को बनाते हैं।
ऐसा कौन है इस जगत में जो अमृत नहीं पाना चाहता? अमृत बनाना चाहते हैं, और जहर ढालते है, जहर निचोड़ते हैं। कौन है इस जगत में जो शाश्वत शान्ति में डूब नहीं जाना चाहते? मगर सारी चेष्टा अशांति और अशान्ति को पैदा करती है।
जरा अपने जीवन के विरोधाभास को देखो- तुम जो चाहते हो वही कर रहे हो? तुम जो चाहते हो उससे विपरीत कर रहे हो। यह विपरीत ही माया है। जिस दिन तुम चाहते हो वही करने लगो, उसी दिन जीवन में धर्म का प्रवेश हुआ। तुम संन्यस्त हुए, तुम दीक्षित हुए… सोचना।
धनी धरमदास के पद बड़े प्यारे हैं। और प्यारे ऐसे नहीं है जैसे लौरी होती है, जो नींद में डूबा दे। प्यारे ऐसे हैं कि कांटो की तरह चुभेंगे और जगाएंगे।
का सोवै दिन रैन,विरहिनी जाग रें।
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