स्वामी विवेकानंद से मिलने एक व्यक्ति आया। उसके चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव साफ झलक रहे थे। स्वामीजी को देखते ही वह उनके पैरों पर गिर गया और कहने लगा, ‘स्वामी जी! मैं बहुत दुखी हूं। मैं मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ता, इसके बावजूद कभी भी सफल नहीं हो पाया।’ स्वामीजी ने पल भर में उसकी परेशानियों को समझ लिया। उन्होंने अपना छोटा-सा पालतू कुत्ता उस व्यक्ति को सौंपा और कहा, ‘तुम कुछ दूर मेरे इस कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवालों के जवाब दूंगा।’ काफी देर तक वह व्यक्ति कुत्ते को सैर कराता रहा। चूंकि कुत्ता स्वामीजी का था, लिहाजा उसने इस बात का ध्यान रखा कि वह मन भर घूम-फिर ले।
बाद में जब वह कुत्ते को लेकर स्वामीजी के पास लौटा तो उसके चेहरे पर थकान के कोई निशान नहीं थे। लगता नहीं था कि वह मेहनत करके आया है। मगर कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा था और थका हुआ लग रहा था। स्वामीजी ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘यह कुत्ता इतना हांफ क्यों रहा है? यह थका हुआ लग रहा है जबकि तुम पहले की तरह ही ताजा और साफ-सुथरे दिख रहे हो?’
उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘स्वामी जी! मैं तो सीधा-सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था, पर यह कुत्ता तो दौड़ता ही रहा। यह गली के सभी कुत्तों के पीछे भागता और उनसे लड़कर फिर मेरे पास वापस आ जाता। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया पर इसने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है, इसीलिए यह ज्यादा थक गया है।’ स्वामी जी मुस्कराए, और कहा, ‘यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है। तुम मंजिल पर सीधे जाने के बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो। उसमें तुम्हारी काफी ऊर्जा लगती है। रास्ता उतना ही तय होता है पर तुम बुरी तरह थक जाते हो।’ स्वामीजी की बातें सुन उस आदमी की आंखें खुल गईं।