धर्म

ओशो : असली धन

छोटे-मोटे अपराधी जेलों में सड़ते हैं। बड़े अपराधी इतिहास के निर्माता हो जाते हैं। तुम्हारा सारा इतिहास बड़े अपराधियों की कथाओं का इतिहास है, और कुछ भी नहीं। असली इतिहास नहीं हैं। असली इतिहास लिखा नहीं गया। असली इतिहास लिखा जा सके,ऐसी अभी मनुष्य की चित्तदशा नहीं हैं।
अगर असली इतिहास लिखा जा सके, तो बुद्ध होंगे उस इतिहास में, महावीर होंगे, कबीर होंगे, नानक होंगे, दादु होंगे, मीरा होगी,सहजो होगी। क्राइस्ट, जरथुस्त्र, लोओत्सू और च्वांगत्सू- ऐसे लोग होंगे। रिंझाई,नारोपा,तिलोपा- ऐसे लोग होंगे। फ्रांसिस, इकहार्ट,थेरेसा- ऐसे लोग होंगे। मोहम्मद, राबिया,बायजीद मंसूर- ऐसे लोग होंगे।

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लेकिन ऐसे लोगों का तो कुछ पता नहीं चलता। फुट नोट भी इतिहास में उनके लिए नहीं लिखे जाते। उनका नाम भी लोगों को ज्ञात नहीं हैं। इस पृथ्वी पर अंनत संत हुए हैं, उनका नाम भी लोगों का ज्ञात नहीं है। और वे असली इतिहास है। वे ही असली नमक हैं पृथ्वी के। उनके कारण ही मनुष्य में थोड़ी गरिमा और गौरव हैं।
चोर आया, प्रधान था चोरो का। उसने यह बात सुनी। वह भरोसा न कर सका। उसने तो सदा जाना कि धन सोना-चांदी ,हीरे जवाहरात में हैं। तो यहां कोई और धन बंट रहा हैं। हम इसका सब लूटे लिए जा रहे हैं औ यह कहती हैं- जा – हंसकर – ले जाने दे चोरों को। कूड़ा-कर्कट है। यहां तू विघ्र मत डाल। मेरे ध्यान में खलल खड़ी न कर। मुझे चुका मत। एक शब्द भी चूक जाएगा, तो मैं पछताऊंगी। वह सारी संपत्ति चली जाए, यह एक शब्द सुनाई पड़ जाए, बहुत है। चोर ठिठक गया।

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मेरे देख अपराधी सदा ही सीधे-सादे लोग हैं। उनमें एक तरह की निर्दोषता होती हैं एक तरह का बालपन होता है। वह ठिठक गया। तो उसने कहा: फिर हम भी क्यों लूटें इसी धन को। तो हम कब तक वही हीरे-जवाहरात लूटते रहें। जब इसको उनकी चिंता नहीं है, तो जरूर कुछ मामला है, कुछ राज हैं। हम कुछ गलत खोज रहे हैं।
वह भागा गया। उसने अपने साथियों को भी कहा- कि मैं तो जाता हूँ सुनने तुम आते हों? क्योंकि वहां कुछ बंटता हैं। मुझे समझ में नहीं आ रहा है अभी कि क्या बंट रहा हैं। कुछ सुक्ष्म बरस रहा होगा वहां। अभी मेरी समझ नहीं है साफ-साफ कि क्या हो रहा हैं,लेकिन एक बात तो पक्की हैं कि कुछ हो रहा है। क्योंकि हम यह सब लिए जा रहे हैं और उपासिका कहती है ले जाने दो। लेकिन मेरे ध्यान में बाधा मत डालो। यहां मैं सुनने बैठी हूं। धर्म-श्रवण कर रही हूं। इसमें खलल नहीं चाहिए। तो जरूर उसके भीतर कोई संगीत बज रहा हैं, जो बाहर से दिखायी नहीं पड़ता। और भीतर कोई रशधार बह रही है,जो बाहर से पकड़ में नहीं आती। हम भी चलें, तुम भी चलो। हम कब तक यह कूड़ा-कर्कट एकत्रित करते रहेंगे। तो हमें अब तक ठीक धन का पता नहीं था।

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शायद चोर भी ठीक धन की तालाश में ही गलत धन को एकत्रित करता रहता हैं। यही मेरा कहना है। इस दुनिया में सभी लोग असली धन को खोजने में लगे हैं, लेकिन कुछ लोग गलत चीजों को असली धन समझ रहे हैं,तो उन्हीं को पकड़ते हैं। जिस दिन उनको पता चल जायेगा कि यह असली धन नहीं हैं उसी दिन उनके जीवन में रूपांतरण,क्रांति नए का अविर्भाव हो जायेगा। उस दिन उन चोरों के जीवन में हुआ।
उन्होंने सब, जो ले गए थे बाहर, पहले जल्दी से भीतर रख दिया। भागे धर्म-सभा की ओर। सुना। पहली बार सुना। कभी धर्म सभा में गए ही नहीं थे। धर्म सभा में जाने की फुर्सत कैसे मिलती। जब लोग धर्म-सभा में जाते, तब वे चोरी करते। तो धर्म-सभा में कभी गए नहीं थे। पहली बार ये अमृत वचन सुने।

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खयाल रखना,अगर पंडित होते, शास्त्रों के जानकार होते, तो शायद कुछ पता न चलता। तुमसे मैं फिर कहता हूं:पापी पहुंच जाते हैं और पंडित चूक जाते हैं। क्योंकि पापी सुन सकते हैं। उनके पास बोझ नहीं है ज्ञान का। उनके पास शब्दों की भीड़ नही हैं। उनके पास सिद्धांतो का जाल नहीं हैं।
पापी इस बात का जानता है कि मैं अज्ञानी हूं, इस कारण सुन सकता है। पंडित सोचता है: मै ज्ञानी हूं। मैं जानता हूं, इसलिए क्या नया होगा। क्या नया मुझे बताया जा सकता हैं? मैंने वेद पढ़े। मैंने उपनिषद पढ़े। गीता मुझे कण्ठस्थ हैं। यहां मुझे क्या नया बताया जा सकता हैं? इसलिए पंडित चूक जाता हैं।
धन्यभागी थे कि वे लोग पंडित नहीं थे और चोर थे। जाकर बैठ गए। अवाक होकर सुना होगा। पहले सुना नहीं था। कुछ पूर्व-ज्ञान नहीं था, जिसके कारण मन खलल डाले। पहले सुना नहीं था। कुछ पूर्व-ज्ञान नहीं था, जिसके कारण मन खलल डाले।

उन्होंने वहां अमृत बरसते देखा। वहां उन्होंने अलौकिक संपदा बंटते देखी। उन्होंने जी भरकर उसे लूटा। चोर थे। शायद इसी को लूटने की सदा कोशिश करते रहे थे। बहुत बार लूटी थी संपत्ति,लेकिन मिली नहीं थी। इसीलिए चोरी जारी रही थी। आप पहली दफे संपत्ति के दर्शन हुए।
फिर सभा की समाप्ति पर वे सब उपासिका के पैरों में गिर पड़े। क्षमा मंागी। धन्यवाद दिया। और चोरों के सरदार ने उपासिका से कहा: आप ही हमारी गुरू है। आपके वे थोड़े से शब्द- कि जा, चोरों को ले जाने दों जो ले जाना हो। आपकी वह हंसी, और आपका निर्मल भाव, और आपकी वह निर्वासना की दशा, और आपका यह कहना कि मेरे धर्म-श्रवण में बाधा न डाल- हमारे जीवन को बदल गयी। आप हमारी गुरू हैं। अब हमें अपने बेटे से प्रव्रज्या दिलाएं। हम सीधे न मांगगे संन्यास। हम आपके द्वारा मांगेगे। आप हमारी गुरू हैं।
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