धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—110

श्रीराम, लक्ष्मण व सीता सारा दिन चलते रहे संध्या के समय गंगा के किनारे पहुंचे। श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि किसी नाविक को कहो कि नाव इधर ले आए ताकि रात्रि से पहले हम गंगा-पार चित्रकूट पहुंच जाएँ, उधर ऋषियों के आश्रम हैं, वहां जाकर विश्राम कर लेंगे।

लक्ष्मण जी ने केवट को पुकारा और कहा, भैया अपनी नाव इधर ले आओ और हमें उस पार पहुंचा दो। केवट ने अपनी नाव में बैठे—बैठे ही दूर से उत्तर दिया, मैं तुम्हें अपनी नाव में नहीं बिठाऊंगा,क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूं कि राम के चरणों की धूलि के स्पर्श से पत्थर की अहिल्या सजीव हो गई, तो मेरी नाव तो लकड़ी की है। यदि यह भी श्रीराम के चरण स्पर्श से नारी बन गई तो मैं अपने कुटुम्ब का परिपालन कैसे करूंगा और उस दूसरी नारी का मैं क्या करूंगा ? परमात्मा और चाहे कितनी भी विपदाएं क्यों न दें, लेकिन किसी को दो नारी न दे।

बाद में राम के समझाने पर केवट ने बड़े विनम्र शब्दों में प्रार्थना की,भगवन् यदि आप मेरी नाव में बैठकर उस पार जाना चाहते हैं तो पहले मुझे आपके चरण धोने की आज्ञा दीजिए। सीता और लक्ष्मण ने राम के चरण धोने की आज्ञा दे दी।

केवट बड़ा प्रसन्न हुआ। कितना भाग्यशाली है केवट। बड़े प्यारे से गंगाजल से श्रीराम के दोनों चरण धो रहा है। पहले बांया पांव धोया और अपने सिर की पगड़ी उतारकर नीचे रख दी और कहने लगा,प्रभु यह पांव इस पर रख लो ताकि फिर से धूल न लग जाए और दायां पांव आगे करो,एक हाथ मेरे सिर पर रख लो राम। ताकि आपको एक पांव से खड़ा रहने में तकलीफ न आए। इस प्रकार श्रीराम का हाथ अपने सिर पर तथा पांव पगड़ी पर रखवाकर जन्म—जन्म के पापों को नष्ट करवा लिया। धन्य हो गया केवट। बड़े प्यार से तीनों को नाव में बिठाया और गंगा के उस पार ले आया।

यह केवट पूर्वजन्म में क्षीर समुद्र में कच्छप था। वह नारायण की चरण-सेवा करना चाहता था। लक्ष्मीजी और शेष नाग ने अनुमति नहीं दी। आज लक्ष्मीजी सीता बनी है और शेष नाग बना है लक्ष्मण। केवट मन ही मन बड़ा प्रसन्न हो रहा है कि पिछले जन्म में आपने मुझे सेवा नहीं करने दी,लेकिन आज आप दोनों खड़े हैं और मैं सेवा कर रहा हूं।
श्रीराम, लक्ष्मण और सीता तीनों नाव से उतरे। केवट ने साष्टांग प्रणाम किया। राम ने सोचा, केवट को क्या दूं? मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैं? पास खड़ी सीताजी राम के मनोभाव को जान गई और उन्होंने अपने हाथ से अंगूठी निकाली और श्रीराम के हाथों में दे दी। श्रीराम केवट को जब वह अंगूठी देने लगे तो केवट ने कहा, मैं साधु-महात्माओं से पैसा नहीं लेता उनकी सेवा मैं मुफ्त में करता हूं। श्रीराम ने कहा, भैया यह उतराई नहीं इसको तुच्छ—सी भेंट समझकर स्वीकार कर लों।

केवट जब बार—बार इन्कार रकने लगा तो लक्ष्मणजी ने कहा,भैया आप उतराई लेने से इन्कार क्यों कर रहे हों? तो केवट ने कहा, भैया लक्ष्मण मैं और राम एक ही जाति के हैं, इसलिए उतराई नहीं लूंगा। यह सुनकर लक्ष्मणजी को गुस्सा आया और कहा, शर्म नहीं आती तुझे केवट। तू नीच जाति का है और हम क्षत्रिय हैं। केवट ने कहा,लक्ष्मण तुम और हम अलग—अलग जाति के हैं,परन्तु राम और मैं एक ही जाति के हैं।

हे भैया लक्ष्मण! शान्ति से विचार किजिए और सुन कर मेरी प्रार्थना पर गौर कीजिए,मैं गंगा नदी का केवट हूँ, लोगों को इस पार से उस पार उतारने में सहयोग देता हूं। इसी प्रकार श्रीराम जी संसार-सागर के केवट हैं लोगों को भवसागर से पार उतारते हैं। अत: हे स्वामी आप मेरे घाट पर आए तो मैंने गंगा पार ले जाकर उस घाट पर आपको उतार लिया। अब मैं जब भी आपके द्वार पर आऊँ तो हे प्रभु! मुझे भी इस संसार-सागर से पार कर देना।

परमात्मा से यही मांगो कि मेरी जीवन रूपी नैया को आप केवट बनकर भवसागर से पार लगा देना। परमात्मा से कहो, हे भगवन् आप मेरी नस—नस में बस जाओ। मुझे झूठे जग की झूठी माया नहीं चाहिए। यदि आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं, तो मुझे वरदान दीजिए कि हर पल मैं आपका सुमिरण करता रहूँ और अन्त समय में आपकी सुन्दर छवि का ध्यान करता हुआ आपके चरण-कमलों में मुझे स्थान मिले। ताकि बार-बार जन्म-मरण के फेर से छुटकारा मिले।

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