हमारी लाइफस्टाइल आए दिन नई-नई बीमारियों को न्योता दे रही है। यहां तक कि डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के कई मामलों में भी लाइफस्टाइल एक वजह बन रही है। हर दिन की आपाधापी में हम अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं दे पाते और अनजाने ही कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। खानपान के साथ ही उठने-बैठने का तरीका और पहनावा भी इसमें अहम रोल निभा रहा है। कई ऐसी चीजें हैं जो ऑफिस या बाजार जाते समय हम अपने साथ रखना नहीं भूलते या यूं कहें कि उनके बिना हमारा काम ही नहीं चलता। इन चीजों में सबसे खास हैं मोबाइल और पर्स। मोबाइल से शरीर को होने वाले नुकसान के बारे में तो हम काफी पढ़ चुके हैं, लेकिन पर्स से होने वाले नुकसान के बारे में सुनकर आपको जरूर आश्चर्य होगा। यह एक अध्ययन में सामने आया है।
हमारा पर्स आमतौर पर रुपयों के साथ ही डेबिट-क्रेडिट कार्ड, विजिटिंग कार्ड, मेट्रो कार्ड, लाइसेंस जैसी कई चीजों से भरा होता है। हममें से कई तो इसमें सिक्के भी रखते हैं। इनसे ज्यादातर लोगों के पर्स काफी मोटे हो जाते हैं। बस यही वह वजह है जो बीमारी को आमंत्रण दे देती है। वहीं यदि इसमें हार्ड चीजें ज्यादा हैं, तो मामला और गंभीर हो सकता है। आइए जानते हैं कि पीछे के पॉकेट में रखा गया पर्स कैसे हमारे लिए खतरनाक हो सकता है…
कैसे हुआ अध्ययन
देश में ऐसे कई लोग हैं जो युवा अवस्था में पीठ दर्द के शिकार हैं। कई बार तो लंबा इलाज कराने पर भी इससे राहत नहीं मिलती। वाटरलू यूनिवर्सिटी में स्पाइन बायोमेकेनिक्स के प्रोफ़ेसर स्टुअर्ट मैकगिल ने ऐसे ही मरीजों को देखते हुए एक अध्ययन किया। उन्होंने इसके निदान के लिए एक प्रयोग किया। उनका प्रयोग उन मरीजों पर केंद्रित रहा, जिनमें साइटिका की संभावना दिखी। वास्तव में साइटिका की बीमारी साइटिक नर्व के दबने या उसको क्षति होने से होती है।
प्रोफेसर मैकगिल ने कुछ मरीजों को एक ही तरफ के बट-चीक (पुट्ठा या कूल्हा) के नीचे पर्स के आकार की छोटी ठोस चीज रखकर बैठने को कहा। मरीजों ने ऐसा लंबे समय तक किया।
प्रोफेसर मैकगिल ने अध्ययन में पाया कि यदि आप सामान्य पर्स को कुछ देर के लिए बैक पॉकेट में रखते हैं, तो उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन यदि आपका पर्स कार्ड्स और सिक्के जैसी ठोस चीजों से भरा हुआ है, मतलब यदि आप इनके गठ्ठर पर कई घंटे बैठेंगे तो इससे हिप जॉइंट और कमर के निचले हिस्से में दर्द होने लगेगा।
पर्स का कैसे होता है बुरा असर
प्रोफेसर गिल के अनुसार जब हम बैक पॉकेट में पर्स रखकर बैठते हैं, तो हिप ज्वाइंट में मौजूद पिरिफॉर्म मसल्स पर दबाव पड़ता है। साथ ही यह दबाव इसके ठीक नीचे मौजूद साइटिक नर्व पर भी पड़ता है। मोटा पर्स होने से यह नर्व पर्स और हिप के बीच में दब जाती है और लगातार ऐसा होने से दर्द होने लगता है। इससे साइटिका हो जाता है। इसमें हिप से शुरू हुआ दर्द नीचे की ओर बढ़ता हुआ पैर में पहुंच जाता है।
इतना ही नहीं मोटा पर्स होने पर हमारा एक तरफ का कूल्हा थोड़ा उठा हुआ रहता है। जितना मोटा पर्स होगा, उतना ही कूल्हा ऊपर उठेगा, इससे संतुलन बिगड़ेगा। लंबे समय तक ऐसा होने से रीढ़ की हड्डी पर इसका दबाव पड़ता है, जो धीरे-धीरे स्थायी दर्द में बदल जाता है। यह उनको लोगों में और जल्दी होता है जिनकी रीढ़ में पहले से कोई समस्या हो।
पर्स का क्या करें
सवाल यह भी उठता है कि फिर पर्स रखें कहां। आप पर्स को बैग या ड्रॉवर में रख सकते हैं। थोड़े समय के लिए आगे वाले पॉकेट में भी रखा जा सकता है। ऑफिस में काम करते समय या ड्राइव करते समय तो पर्स को बैक पॉकेट में बिल्कुल भी न रखें। खासतौर से जब लंबे समय तक के लिए बैठना हो। एक उपाय यह भी है कि पर्स में ठोस चीजें न रखें। उसके लिए हैंडबैग का उपयोग करें।
साइटिका के सामान्य लक्षण
आमतौर पर साइटिका से शरीर का केवल एक तरफ का ही निचला हिस्सा प्रभावित होता है। इसमें दर्द कमर से जांघों के पीछे की ओर से होता हुआ पैरों के निचले हिस्से की तरफ जाता है।
1. कूल्हे या पैर के एक ही तरफ लगातार दर्द होना। हालांकि अपवाद रूप में यह दोनों ओर भी हो सकता है।
2. दर्द का कमर के निचले भाग से कूल्हे की ओर साइटिक नर्व वाले एरिया से से होते हुए पैरों के निचले भाग तक जाना।
3. लेटने या चलने से दर्द कम होना, लेकिन खड़े होने पर बढ़ना।
4. कूल्हे से लेकर पैरों तक इतना तेज दर्द होना कि चलना मुश्किल हो जाए।
5. सुई या पिन चुभने जैसा तेज दर्द, जिसमें पैरों में झुनझुनाहट भी हो सकती है।
6. पैरों में सुन्नता भी हो सकती है या कमजोरी भी महसूस हो सकती है।
7. मलत्याग के समय भी तकलीफ महसूस हो सकती है।