नई दिल्ली,
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने बहुप्रतिक्षित भाषण में राष्ट्रवाद पर एक लंबा आख्यान दिया। प्रणव मुखर्जी ने अपने संबोधन की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया कि वह नेशन (देश), नैशनलिज्म (राष्ट्रवाद) और पैट्रियॉटिज्म (देशभक्ति) पर बात करने आए हैं। प्रणव मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रवाद किसी धर्म या भाषा में नहीं बंटा है। पूर्व राष्ट्रपति अपने भाषण में भारतीय राज्य को प्राचीन महाजनपदों, मौर्य, गुप्त, मुगल और ब्रिटिश शासन से होते हुए आजाद भारत तक लेकर आए। मुखर्जी ने अपने भाषण में तिलक, टैगोर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू समेत अन्य विद्वानों को कोट करते हुए राष्ट्रवाद और देश पर अपनी राय रखी।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि काफी समय कौटिल्य ने कहा था कि प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्। नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्।। यानी प्रजा की खुशी में ही राजा की प्रसन्नता निहित रहती है। प्रजा के हित में ही राजा का हित होता है। प्रजा की अच्छाई राजा की अच्छाई होती है। विचारों में समानता के लिए संवाद बेहद जरूरी है। बातचीत से हर समस्या का समाधान मुमकिन है। शांति की ओर आगे बढ़ने से समृद्धि मिलेगी।
आपको बता दें कि प्रणव मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। कांग्रेस के कई नेताओं ने मुखर्जी को संघ के कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का सुझाव दिया था। प्रणव मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस नेत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी कुछ ऐसी ही अपील की थी। इन सबके बावजूद मुखर्जी कार्यक्रम में शामिल हुए और देशभक्ति पर एक लंबा व्याख्यान दिया। संघ के कार्यक्रम में मौजूद स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि आपलोग अनुशासित और ट्रेंड है, शांति और सौहार्द के लिए काम कीजिए।
मुखर्जी बोले, धर्म और असहिष्णुता के माध्यम से भारत को परिभाषित करना इसे कमजोर करेगा। पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी ने कहा कि धर्म, मतभेद और असिहष्णुता से भारत को परिभाषित करने का हर प्रयास देश को कमजोर बनाएगा। मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता भारतीय पहचान को कमजोर बनाएगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पहचान और भारतीय राष्ट्रवाद सार्वभौमिकता और सह-अस्तित्व से पैदा हुआ है।