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प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत 12 लोगों को जान देकर चुकानी पड़ी…आखिर क्यों??

प्रदूषण के खिलाफ जागरुकता अभियान चलते रहते है। प्रदूषण के खिलाफ रोष प्रदर्शन भी होते रहे है। प्रदूषण के खिलाफ आमजन सदा से आवाज उठाता रहा है। लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है, कि प्रदूषण के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों को गोली मार दी गई हो। तमिलनाडु के तूतीकोरिन में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है। वहां पिछले 100 दिनों से वेदांता ग्रुप की कंपनी Sterlite Copper के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा था। लोगों का आरोप है, कि Sterlite Copper की फैक्ट्री से उनके इलाके में प्रदूषण फैल रहा है। स्थानीय लोग इस प्लांट को बंद करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, दो दिन पूर्व ये विरोध प्रदर्शन काफी हिंसक हो गया। हिंसक भीड़ ने बसें जला दीं, कई जगहों पर तोड़फोड़ की घटनाएं हुई। पुलिस की कार्रवाई में 40 से ज़्यादा लोग गंभीर रुप से ज़ख्मी हो गए। जिनमें कई पत्रकार भी शामिल हैं।

लेकिन, इस विरोध प्रदर्शन का सबसे दुखद पहलू ये है, कि इसमें अभी तक 12 लोगों की जान जा चुकी है और ऐसा आरोप लगाया जा रहा है, कि मरने वालों में से ज़्यादातर लोग ऐसे थे, जिन्हें पुलिस ने जानबूझकर गोली मार दी।
नियमों के मुताबिक भीड़ पर गोली तभी चलाई जा सकती है, जब स्थिति काफी गंभीर हो जाए। या फिर हालात ऐसे बन जाएं, कि गोली चलाने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ना हो। आम तौर पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तीन मुख्य नियमों का पालन करना होता है। इन नियमों के तहत ताकत का इस्तेमाल ज़रुरत से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। ताकत के इस्तेमाल का मकसद भीड़ को सबक सिखाना नहीं, बल्कि उसे काबू करना होना चाहिए और जैसे ही स्थिति नियंत्रण में आ जाए, पुलिस को अपनी कार्रवाई रोक देनी चाहिए।

लेकिन, तूतीकोरिन में पुलिसकर्मियों ने ऐसा नहीं किया। आरोपों के मुताबिक पुलिस ने बदले की भावना से कार्रवाई की और वो भीड़ को काबू में नहीं करना चाहती थी बल्कि उसे सबक सिखाना चाहती थी। नियमों के मुताबिक भीड़ पर गोली चलाने की स्थिति में उसकी दिशा कमर के नीचे होनी चाहिए और जैसे ही भीड़ गोली की आवाज़ सुनकर वहां से भागे, पुलिस को Firing रोक देनी चाहिए। लेकिन तूतीकोरीन में ऐसा नहीं हुआ। तमिलनाडु की सरकार ने इस हिंसा की जांच के लिए एक Commission का गठन किया है। जिसके अध्यक्ष Madras High Court के Retired Judge होंगे। इसके अलावा, गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है और तमिलनाडु सरकार से पूरी जानकारी मांगी है।

किसी भी विवाद का एक इतिहास होता है और अगर आप सोच रहे हैं, कि तमिलनाडु के तूतीकोरिन में Sterlite Copper के खिलाफ हो रहा विरोध प्रदर्शन सिर्फ 100 दिन पुराना है, तो ऐसा नहीं है। सच तो ये है, कि 21 वर्षों से तूतीकोरिन की हवा में ज़हर फैल रहा था, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। इस प्लांट में हर साल 4 लाख टन Copper Cathode बनता है लेकिन कंपनी इसकी क्षमता बढ़ाकर 8 लाख टन करना चाहती थी। जबकि स्थानीय लोग ऐसा नहीं चाहते थे। वर्ष 1995 में इस प्लांट का प्रस्ताव आया था और तब से ही इस पर विवाद चला आ रहा है। गुजरात, गोवा और महाराष्ट्र ने प्रदूषण की वजह से इस प्लांट को लगाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। आरोप है कि तमिलनाडु में प्लांट की मंज़ूरी पाने के लिए Sterlite Copper ने Environment Assessment रिपोर्ट में कई गलत तथ्य बताए।

ये प्लांट तमिलनाडु के Mannar Marine National Park के करीब बना है। इस कंपनी ने दावा किया था कि ये Eco-Sensitive Zone के 25 किलोमीटर के दायरे से बाहर है। लेकिन बाद में ये दावा गलत पाया गया था। 14 अक्टूबर 1996 को Tamil Nadu Pollution Control Board ने, इस प्लांट को चलाने का लाइसेंस दिया था और 1997 में ही लोगों ने इस प्लांट के घुएं से तबीयत खराब होने की शिकायतें करना शुरू कर दिया था। 5 मई 1997 को इसी प्लांट के आसपास काम करने वाली महिला कर्मचारियों की तबीयत अचानक खराब हो गई। उनमें से कई महिलाएं बेहोश हो गईं। लेकिन इसके बावजूद राज्य के Pollution Control Board ने Sterlite को Clean Chit दे दी। मार्च 1999 में प्लांट के क़रीब मौजूद All India Radio station के 11 कर्मचारियों ने इसके खिलाफ शिकायत की, और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था लेकिन तब भी इस प्लांट को Clean Chit मिल गई थी।

हद तो तब हो गई, जब राज्य के Pollution Control Board ने इस प्लांट को प्रति वर्ष अपना प्रोडक्शन 40 हज़ार टन से 70 हज़ार टन करने की इजाज़त दे दी। 2010 में प्रदूषण फैलाने की वजह से मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर इस प्लांट को बंद कर दिया गया था। 2013 में पर्यावरण को बर्बाद करने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी पर 100 करोड़ की Penalty लगाई थी और मार्च 2013 में प्लांट से ज़हरीली गैस का रिसाव होने की वजह से कई लोग बीमार पड़े थे। यानी साल दर साल बीतते गये. लेकिन हमारे सिस्टम ने इस समस्य़ा का इलाज नहीं किया। ये वो तमाम वजहें है, जिसके कारण लोग आज भी यही कहते हैं कि एक कंपनी को, उनकी ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ करने का लाइसेंस दे दिया गया।

आम आदमी आज भी पूर्ण स्वराज का इंतज़ार कर रहा है। लोग पहले अंग्रेज़ों की गुलामी करते थे। अब Sterlite जैसी कंपनिंयों की गुलामी करते हैं। आम आदमी को स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार भी नहीं मिला है। उनके हिस्से की सांसें भी थोड़े से मुनाफे के लिए बेच दी जाती हैं। अब ज़रा आपको Sterlite Copper का इतिहास भी बता देते हैं। इससे आपको ये पता चलेगा, कि इसके वर्तमान को कामयाब बनाने में और वातावरण को नाकाम करने में कैसे सिस्टम ने इस प्लांट का साथ दिया। 14 अक्टूबर 1996 को Tamil Nadu Pollution Control Board ने, इस प्लांट को चलाने का लाइसेंस दिया। लेकिन ये खुद राज्य की एजेंसी के लाइसेंस नियमों का उल्लंघन था। क्योंकि, ऐसे किसी भी प्लांट का Eco-Sensitive Zone के 25 किलोमीटर के दायरे से बाहर होना अनिवार्य था।

लेकिन प्लांट के ऑपरेट होने के कुछ महीनों के बाद ही स्थानीय लोगों ने प्रदूषण को लेकर शिकायतें करनी शुरु कर दीं। 20 अगस्त 1997 को Tamil Nadu Electricity Board के कर्मचारियों ने प्लांट से निकलने वाले धुएं की वजह से सिर दर्द, कफ और खांसी की शिकायत की। क्योंकि, उनका ऑफिस, Sterlite के प्लांट के बिल्कुल क़रीब था। 5 मई 1997 को इसी प्लांट के आसपास काम करने वाली महिला कर्मचारियों की तबियत अचानक खराब हो गई। उनमें से कई महिलाएं प्लांट से निकलने वाले ज़हरीले धुएं की वजह से बेहोश हो गई। हालांकि इसके बावजूद राज्य के Pollution Control Board ने Sterlite को Clean Chit दे दी।

मार्च 1999 में प्लांट के क़रीब मौजूद All India Radio station के 11 कर्मचारियों ने Distress की शिकायत की, और बाद में उन्हें Hospitalised करना पड़ा। लेकिन यहां भी इस प्लांट को Clean Chit मिल गई। हद तो तब हो गई, जब राज्य के Pollution Control Board ने इस प्लांट को प्रति वर्ष अपना प्रोडक्शन 40 हज़ार टन से 70 हज़ार टन करने की इजाज़त दे दी। ये वो तमाम वजहें है, जिसके कारण लोग आज तक यही आरोप लगाते रहे हैं, कि ज़िला प्रसाशन और Tamil Nadu Pollution Control Board ने, प्रदूषण फैलाने वाली Sterlite Copper का हमेशा बचाव किया है और लोगों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ किया है।

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