हिसार (राजेश्वर बैनीवाल)
चुनावी माहौल, सूर्य देव के कड़े तेवर, सुनसान चुनावी कार्यालय, चुप मतदाता। दोपहरी में पसीना बहाता प्रत्याशी। ऐसा ही नजारा लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रहा है। साढ़े 16 लाख मतदाताओं के बीच पहुंचना प्रत्याशी के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। भीषण गर्मी के चलते अल सुबह प्रचार के लिए निकलने वाले प्रत्याशियों के लिए जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, प्रचार की गति भी धीमी हो जाती है। दोपहर में मतदाताओं के घर-द्वार पहुंचने में प्रत्याशियों को पसीने छूट रहे हैं। प्रत्याशियों को डर सताता रहता है कि कहीं आराम फरमा रहा वोटर नाराज न हो जाए। इसके बाद शाम को जैसे ही सूर्य देव के तेवर कुछ नरम पडऩे शुरू होते है तो प्रत्याशी एक बार फिर अपने समर्थकों के साथ प्रचार के लिए दौड़ पड़ते हैं।
वोट जहां मर्जी देना, मेरे घर जरूर आना…
चुनावी सीजन होने के बावजूद चुप बैठा मतदाता आजकल अपने घर नेताओं के जलपान के कार्यक्रम आयोजित करने से भी दूरी बनाने लगा है। चर्चा के दौरान कुछ मतदाताओं का कहना था कि वोटों की जरूरत के समय तो इन नेताओं को कहीं भी चाय पिला दो, लेकिन बाद में यह पहचानने से भी मना कर देते हैं। इस चुनाव में यह भी देखने को मिल रहा है कि जब कोई समर्थक अपने नेता की जलपान कार्यक्रम करवाता है तो वह दूसरे प्रत्याशी के समर्थकों को भी न्योता देने से नहीं चूकता है। अपने साथी को न्योता देते वक्त यह बात वह समर्थक जरूर स्पष्ट करने में देर नहीं करता कि वोट जहां आपकी मर्जी हो वहां देना, लेकिन आपके साथ मेरा भाईचारा है और आपको मेरे घर जरूर आना है। इस पर साथी भी न्योता स्वीकारते हुए कहता है कि भाई कार्यक्रम अपने घर है, जरूर आएंगे।
खेतों या घरों में नेता के पहुंचने पर रूचि नहीं दिखा रहे मतदाता
एक समय था जब चुनावी दंगल में उतरा प्रत्याशी किसी मतदाता के घर-द्वार या खेत में पहुंचता था तो प्रत्याशी को देखकर आसपास में खुशी की लहर दौड़ जाती थी, अब वह दृश्य दिखाई नहीं दे रहा। जब कोई प्रत्याशी खेत में पहुंचकर वोटों की अपील करने पहुंचता है तो ऊपरी मन से आवभगत कर प्रत्याशी के जाने के बाद यह चर्चा जरूर सुनने को मिल जाती है कि ये वोटां के टैम पर दिखै सै, बाद मैं तो ढूंढे कौनी पावै। इस तरह आजकल के चुनावी प्रचार के दौरान मतदाताओं की बेरूखी भी प्रत्याशियों को परेशानी में डाले हुए है।
दोपहर को सुनसान हो जाते हैं प्रत्याशियों के कार्यालय
हिसार संसदीय सीट पर चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशियों ने अपने-अपने चुनावी कार्यालय खोल दिये हैं। किसी समय प्रत्याशी के चुनावी कार्यालय के उद्घाटन पर दिखने वाली भीड़ आजकल न के बराबर दिखाई दे रही है। गली-मौहल्लों में भी चुनावी कार्यालय के उद्घाटन अवसर पर भीड़ न आना हर प्रत्याशी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। चुनावी कार्यालय के उद्घाटन के बाद जैसे-जैसे सूर्य देव कड़े तेवर दिखाने शुरू करते है, तो चुनावी कार्यालय में बैठे समर्थक भी खिसकने की कोशिश करते हैं।
नंबरी भी बने प्रत्याशियों के लिए परेशानी
चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशी जितने मतदाताओं की चुप्पी और भीषण गर्मी से परेशान है, उससे कहीं ज्यादा उन्हीं के नंबरी समर्थकों ने उनके सिर में दर्द किया हुआ है। प्रत्याशी के समक्ष जब ये नंबरी अपने-अपने क्षेत्र की अपने प्रत्याक्षी के पक्ष में रिपोर्ट प्रस्तुत कर विजयी आंकड़ा प्रस्तुत कर देते हैं। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि कई बार तो प्रत्याशी ऐसे नंबरी समर्थकों को क्षेत्र की ठेकेदारी लेने की बजाय सीधा मतदाताओं से उन्हें जुड़वाने की सलाह दे रहे हैं।
परिवार को भी बना रहे हैं सफेदपोश
राजनीतिक पंडितों की माने तो कुछ नंबरी समर्थकों से उस क्षेत्र के मतदाताओं की प्रत्याशियों के प्रति दूरी बनाए जाने पर उन्होंने एक नया पैंतरा अपनाना शुरू कर दिया है। वोट मांगने के लिए आने वाले प्रत्याशियों के समक्ष अपनी पैठ दिखाने के लिए उन्होंने अपने बच्चों को भी सफेदपोश बना दिया है। शाम के समय ऐसे नंबरी नेता अपने परिवार के साथ अपने घरों के आगे बैठ जाते हैं ताकि वोट मांगने के लिए आने वाले प्रत्याशी को यह लगे कि इस परिवार की इस क्षेत्र में काफी पकड़ है लेकिन ऐसे नंबरी समर्थकों की हवा निकालने में उनके पड़ौसी भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जब प्रत्याशी ऐसे परिवारों के पड़ौस में वोट मांगने दूसरे घरों में जाते हैं तो पड़ौसी सबसे पहले उनके बारे में पूछते हैं। जब प्रत्याशी यह कहता है कि ये तो अपने पक्ष में है, इस पर पड़ौसी की ओर से तपाक से जवाब होता है कि, ये किसी के नहीं है। ये तो सभी को यहां जीताकर भेज रहे हैं