धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, बच्चों को जिम्मेदारी लेना बचपन में सिखा देना चाहिए। इससे उनकी निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। बच्चों को पढ़ाई के साथ—साथ पैसों का महत्व भी समझाना चाहिए। इससे वे जीवनभर पैसों का सही उपयोग करेंगे और कभी गलत रस्ते पर नहीं जायेंगे। आज जो युवा नशा कर रहे है उसका मूल कारण उन्हें बचपन में जिम्मेदारी न मिलना ही है। यदि उन्हें बचपन में जिम्मेदारियां दी होती तो उन्हें भटककर गलत रस्ते पर जाने का समय ही नहीं मिलता।
भगवान श्रीकृष्ण जब 5 साल के थे, तभी से अपने घर की गायों को चराने के लिए जंगल में जाते थे। अपने ग्वाले मित्रों के साथ वे पूरा दिन बृजमंडल के जंगलों में अपनी गायों की सुरक्षा के लिए साथ रहते थे। वहीं जंगल में मां यशोदा द्वारा दिया गया भोजन करते थे। शाम तक वे गायों के बीच रहते और शाम को अपनी गायों को लेकर घर लौट आते। उस समय गाय आजीविका का मुख्य साधन होती थी। भगवान श्रीकृष्ण महज 5 साल की आयु से ही घर की अर्थव्यवस्था में अपना सहयोग देने लगे थे। उनकी यह लीला आज के अभिभावकों को संदेश देती है कि पढ़ाई के साथ—साथ कमाई करना बच्चों को सिखाना होगा।
बच्चों को पैसे खर्च करना नहीं बल्कि कमाना सिखाएं। बच्चें यदि पैसा कमाना सिखने लगेंगे तो वे जिद्दी नहीं बनेंगे और पैसे की कदर करते हुए फिजूल खर्च करने वाले भी नहीं बनेंगे। बच्चों को लाड़—प्यार दें, लेकिन उन्हें जिम्मेदार भी बनाएं। उन्हें छोटे—छोटे काम भी सौंपे। इससे उनमें घर के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी आयेगा और हर तरह की परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता भी आएगी। प्रेम का भाव भी बढ़ेगा। इससे वे घर, परिवार और समाज के प्रति ज्यादा गंभीर होंगे। वे कभी भी अपना समय इधर—उधर की बातों में व्यर्थ नहीं गवांयेंगे।
प्रेमी सुंदरसाथ जी, यदि बच्चों को जिम्मेवार नागरिक बनाना चाहते हो तो उन्हें बचपन से ही जिम्मेदारी का बोध करवाएं। उन्हें समाज के वास्तविक मूल्यों से अवगत करवाएं।