एक बार श्यामसुन्दर अपना श्रृंगार कर रहे थे। तभी श्यामसुन्दर ने कुछ सोचकर नन्दगाँव की गोपियों को बुलाया और कहा कि अभी तुम बरसाना जाओ और ये पता लगाना कि हमारी प्राण प्यारी ने आज कैसे वस्त्र धारण किए हैं। आज हम भी वैसी ही पोशाक धारण करेंगे। आज तो राधे जैसे ही वस्त्र धारण करके ही निकुंज में जायेंगे और तो हमें देखकर राधा जी अचम्भित हो जायेंगी।
जब नन्द गाँव से गोपियाँ श्री बरसाना पहुँची तो श्री कुछ मंजरियाँ श्री राधा रानी का श्रृंगार कर रही थीं। कुछ मंजरिया बाहर खड़ी थीं। उन्होंने गोपियों को अन्दर जाने नहीं दिया। गोपियों ने बहुत अनुरोध किया कि सिर्फ एक झलक तो प्यारी की निहारने दो फिर हम यहाँ से चली जाएगीं। मंजरी ने कहा कि एक शर्त है कि कोई एक गोपी ही अन्दर जाएगी।
फिर एक गोपी अन्दर श्रीराधे की झलक के दर्शन करने गयी। गोपी बिना पलकें झपकाए श्रीराधे की झलक के दर्शन करती रही। फिर उस गोपी ने तुरन्त अपने नेत्र बन्द कर लिए और बन्द नेत्रों से ही बाहर आकर दूसरी गोपी को कहा कि अरी सखी ! जल्दी से मुझे नन्दगाँव ले चल। सभी सखियों ने कहा कि पहले श्रीराधे के श्रृंगार का वर्णन तो कर सखी। गोपी ने कहा कि पहले जल्दी से मुझे श्यामसुन्दर के पास ले चलो वहीं पर बताती हूँ।
उस गोपी का हाथ पकडकर सखियाँ नन्दभवन में ले आयीं। जब सखियाँ नंदगाँव पहुँची तो श्यामसुन्दर ने पूछा कि कर लिये मेरी श्रीराधे के दर्शन ? अब जल्दी से मुझे बता कैसे पोषाक धारण किए हैं ? कितनी सुन्दर लग रही थीं मेरी प्यारी ?
तब गोपी ने कहा कि हमारी प्राण प्यारी को बड़े प्रेम से संभाल कर मेरे इन नेत्रों में समा कर लायी हूँ। लो अब मैं नेत्र खोल रही हूँ। आप मेरे नेत्रों में झांक कर प्राण प्यारी का दर्शन करे।
अहा ! कितना अद्भुत भाव है। कितना समर्पित भाव है। ऐसा अद्भुत और समर्पित भाव सिर्फ बृज की गोपिकाएँ ही कर सकती हैं। तब श्यामसुन्दर ने उस गोपी के नयनों में झाँका तो बरसाने में श्रृंगार करती हुई श्रीराधे दिखाई दीं। श्यामसुन्दर अपनी प्राण प्यारी की झलक पाकर उस गोपी के नेत्रों में ही खो गए। अपलक उस गोपी के नेत्रों में ही निहारते रहे। अपना श्रृंगार करना भी जैसे भूल गए। एक स्तम्भ की तरह जैसे अचेतन हो गए हो। एक गोपी ने श्यामसुन्दर को पुकारा तो चेतनवन्त हुए।
श्यामसुन्दर उस गोपी पर बलिहारी जाते हैं और बोले तू धन्य है गोपी और तेरा प्रेम भी धन्य है। तुम्हारे प्रेम ने तो नन्दभवन में बरसाना दिखा दिया है।
फिर श्यामसुंदर ने श्रीराधे जैसा ही श्रृंगार और पोषाक धारण किए। जिस गोपी के नेत्रों में श्री राधे देखी थी उस कहा कि अब तुम अपने नेत्रों में मेरी छवि को बन्द कर लो। उस गोपी ने श्यामसुन्दर को भी अपलक निहारा और थोडी देर में अपने नेत्रों को बन्द कर दिया। श्यामसुन्दर ने एक और गोपी से कहा कि इस गोपी को निकुंज में ले जाओ जहाँ श्रीराधे बैठकर मेरा इन्तजार कर रही हैं। वो सखी उसका हाथ पकड़कर निकुंज में ले आयी, जहाँ श्रीराधे अपने श्यामसुन्दर का इन्तजार कर रही थी।
नन्द गाँव की गोपियों को देखकर उनसे पूछा कि श्यामसुन्दर कहाँ हैं ? जिस गोपी के नेत्र बन्द थे उसने कहा कि श्यामसुन्दर मेरे नेत्रों में समा गए हैं। ऐसा कहकर उस गोपी ने अपने नेत्रों को जैसे ही खोला, तो श्रीराधे भी उसके नेत्रों में झाँककर अचम्भित सी हो गयीं। उस गोपी के एक नेत्र में श्रृंगार करती हुई बरसाना में श्रीराधे दिखाई दे रही थीं और दूसरे नेत्र में श्रृंगार करते हुए नन्दभवन में श्यामसुन्दर दिखाई दे रहे थे। उस गोपी के दोनों नेत्रों में प्रिया प्रियतम दोनों दिखाई दे रहे थे।
तभी दूर से श्यामसुन्दर अपनी बंसी की मधुर धुन बजाते हुए आते दिखे। दोनों एक दूसरे को देखकर अचम्भित हो रहे हैं क्योंकि जैसा श्रृंगार उस गोपी के नेत्रों में दिखाई दे रहा है वैसा ही श्रृंगार दोनों ने किया है।
राधा जी उस गोपी को अपना हीरा जड़ित हार पहना देती है और आलिंगन करते हुए कहती हैं, तू धन्य है गोपी और तेरा प्रेम भी धन्य हैं। तूने तो अपने दोनों नेत्रों में मुझे और श्यामसुन्दर दोनों को बसा लिया है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी,मन में पवित्र भावना हो तो किसी को भी अपने नेत्रों में बसाया जा सकता है।