धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—133

देवराज इंद्र के पुत्र जयंत थे। राजा का बेटा था तो उसे लगता था कि वह जो भी करेगा, सब सही है।

रामायण में वनवास के समय श्रीराम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में रह रहे थे। एक दिन श्रीराम और सीता बैठकर कुछ बातचीत कर रहे थे। उस समय जयंत ने कौए का वेश बनाया और सोचा कि मैं परीक्षा लेता हूं कि राम कितने बलशाली हैं? ऐसा सोचकर कौए ने सीता जी के पैरों में चोंच मार दी।

सीता जी को दर्द हुआ तो श्रीराम ने छोटे से तिनके का बाण बनाया और अभिमंत्रित करके जयंत के पीछे छोड़ दिया। ब्रह्मास्त्र की तरह तिनके का बाण जयंत के पीछे चलने लगा तो वह डरकर भागने लगा। सबसे पहले वह अपने पिता देवराज इंद्र के पास पहुंचा। इंद्र ने उससे कहा, ‘तूने श्रीराम का अपराध किया है तो मैं तुझे नहीं रख सकता।’

जयंत कई जगह भागा, कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन उसे कहीं भी मदद नहीं मिली। रास्ते में उसे नारद मिल गए।

नारद ने जयंत से पूरी घटना पूछी। नारद जी की वजह से वह तीर थोड़ी देर वहीं रुक गया, क्योंकि वे देवर्षि थे। पूरी बात समझने के बाद नारद ने कहा, ‘जयंत, तुम भूल कर रहे हो। गलती तुमने सीता जी और राम जी के प्रति की है और चाहते हो कि तुम्हें कोई दूसरा बचाए। ऐसा नहीं हो पाएगा। जाओ श्रीराम से क्षमा मांगो। वह तुम्हें क्षमा करेंगे, उसके बाद ही तुम बच पाओगे।’

जयंत ने ऐसा ही किया। श्रीराम ने जयंत से कहा, ‘तुम्हें दंड तो मिलेगा, लेकिन मृत्यु दंड नहीं।’ ऐसा कहकर श्रीराम ने उसकी एक आंख में तीर मारा और उसे जीवित छोड़ दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जिस व्यक्ति के प्रति हमसे कोई अपराध हुआ है, सबसे पहले उसी व्यक्ति से हमें क्षमा मांगनी चाहिए। कुछ लोग अपराध करते हैं और कुछ पुण्य करके सोचते हैं कि पाप कट जाएंगे। ये बात गलत है। हमें गलत काम करना ही नहीं चाहिए और अगर कुछ गलत काम हो गया है तो उसके लिए क्षमा जरूर मांगनी चाहिए।

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