धर्म

ओशो : ध्यान

जीवन आधार पत्रिका यानि एक जगह सभी जानकारी..व्यक्तिगत विकास के साथ—साथ पारिवारिक सुरक्षा गारंटी और मासिक आमदनी भी..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

पत्रकारिकता के क्षेत्र में है तो जीवन आधार न्यूज पोर्टल के साथ जुड़े और 72 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए वार्षिक पैकेज के साथ अन्य बेहतरीन स्कीम का लाभ उठाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

जब ध्यान तुम शुरू करोगे तो जीवन-शैली बदलेगी। क्योंकि ध्यान एक क्रांतिकार बात है। एक नया तत्व तुम्हारे जीवन में प्रविष्ट हुआ। जो कल तक सार्थक दिखता था,अब व्यर्थ दिखाई पडऩे लगेगा। उससे ज्यादा सार्थक मिलने लगा,तो तुलना पैदा होगी।
पूछा नहीं हैं हेंमत ने,लेकिन अड़चन वही है कि पत्नी को अब कामवासना में कोई रस नहीं रहा है। उसी पति का मन परेशान हो रहा है। डर से पूछा नहीं कि पता नहीं मैं क्या कहूं। मेरा कुछ भरोसा नहीं है। मगर तुम पूछो कि न पूछो, मुझे कहना है, कहना ही है। तुम्हारे प्रश्र की फ्रिक कौन करता है?
और तुम्हारी बेचैनी भी मैं समझ सकता हूं क्योंकि पति का अभी भी रस है काम में,और पत्नी का रस चला गया। अड़चन हो गई। पत्नी बाहर जाना भी बंद कर दिया। पत्नी ने भोजन भी कम कर दिया। इतना ही नहीं पत्नी ने ध्यान भी छोड़ दिया। अब तक जो हुआ ठीक हुआ,ठीक हुआ। पहाड़ पहाड़ न रहे,नदी नदी न रही। अब एक कदम उठाओ। पहाड़ के फिर पहाड़ हो जाने दो। नदी को फिर नदी हो जाने दो। अब फिर सामान्य जीवन में लौट आओ।
जब ध्यान तुम्हें फिर से सामान्य जीवन में ले आए,तभी समझना कि परिपूर्णता हुई। जो आदमी हिमालय पर जाकर बैठ गया है दूकान छोड़ कर,और दूकान पर आने में डरता है,उसका ध्यान अभी पूरा नहीं हुआ। अगर ध्यान पूरा हो गया है,तो अब वहां बैठे क्या कर रहे हो? अब वापस दूकान पर आ जाओ। अब दुकान पर बैठकर भी इस ढंग से बैठो कि हिमालय भी रहे और दुकान भी रहे।
तो मेरी सलाह है कुमुद को कि अब धीरे-धीरे भोजन फिर ठीक से लेना शुरू करो। ऐसा हो जाता है। अब ध्यान बढ़ता है तो भोजन कम हो जाता है। क्योंकि ध्यान इतनी जगह ले लेता है कि भोजन के लिए जगह नहीं रह जाती।
तुमने खयाल किया,जितना आदमी परेशान,बेचैन होता है,उतना ज्यादा भोजन कर लेता है। ज्यादा भोजन करने वाले लोग परेशानी की वजह से ज्यादा भोजन करते है,बेचैनी तनाव की वजह से ज्यादा भोजन करते हैं। सह तो अब मनोवैज्ञनिकों की खोज का हिस्सा हो गया है कि ज्यादा भोजन आदमी क्यों करता है? भीतर खली-खाली लगता है उसको। खलीपन को भरें कैसे? और कोई उपाय नहीं दिखता। सरकाए जाओ भोजन गले से, थोड़ा भराव मालूम पड़ता है। लेकिन यह भी कोई भराव हैं? यह धोखा है भराव का।
चिंतित आदमी ज्यादा भोजन क्यों करता है? क्योंकि उसे डर है,भय है,-पता नहीं कल भोजन मिले या न मिले। कल का क्या पता,कल हो या न हो। बचपन से ही यह उपद्रव शूरू हो जाता है।
तुमने ख्याल किया , जो मां अपने बच्चे को पूरा-पूरा स्तन देती है,जितना बच्चे को चाहिए… तुमने ख्याल किया देखा? नहीं देखा हो तो ख्याल करना…। वह बच्चा भागता है। वह दुध पीना ही नहीं चाहता। मां उसको दुध पिलाना चाहती है वह इधर-उधर मुंह करता है। और जो मां बच्चे से स्तन छुड़वाना चाहती है चह स्तन पकड़ता है। तुमने यह भेद देखा है? जिस घर मे बच्चे की ङ्क्षचता की जाती है,वह भोजन की फ्रिक नहीं करता बच्चा। वह खेलने जा रहा है उसे भोजन की ङ्क्षचता नहीं है। लेकिन जिस घर में बच्चे की फ्रिक नहीं की जाती, अनाथालय में ,वहां बच्चे चौबीसा घंटे भोजन का ही विचार करते है। घंटी देखते रहते है, कब बजे भोजनालय की। उनको बुलाना नहीं पड़ता। उनको भोजनालय से उठाना पड़ता है,बुलाना नहीं पड़ता।
जीवन आधार बिजनेस सुपर धमाका…बिना लागत के 15 लाख 82 हजार रुपए का बिजनेस करने का मौका….जानने के लिए यहां क्लिक करे

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—236

ओशो : आंनद-समर्पण

ओशो-नेति-नेति