धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—236

मद्र देश के राजा शल्य, नकुल सहदेव की माँ माद्री के भाई थे। जब उन्हें यह ख़बर मिली कि पांडव उपप्लव्य के नगर में युद्ध की तैयारियाँ कर रहे हैं, तो उन्होंने एक भारी सेना इकट्ठी की और उसे लेकर पांडवों की सहायता के लिए उपप्लव्य की ओर रवाना हो गए।

राजा शल्य की सेना बहुत बड़ी थी। उपप्लव्य की ओर जाते हुए रास्ते में जहाँ कहीं भी शल्य विश्राम करने के लिए डेरा डालते थे, तो उनकी सेना का पड़ाव कोई डेढ़ योजन तक लंबा फैल जाता था।

जब दुर्योधन ने सुना कि राजा शल्य विशाल सेना लेकर पांडवों की सहायता के लिए जा रहे हैं, तो उसने किसी प्रकार इस सेना को अपनी ओर कर लेने का निश्चय कर लिया। अपने कुशल कर्मचारियों को उसने आज्ञा दी कि रास्ते में जहाँ कहीं भी राजा शल्य और उनकी सेना डेरा डाले, उसे हर तरह की सुविधा पहुँचाई जाए। शल्य पर दुर्योधन के आदर-सत्कार का कुछ ऐसा असर हुआ कि उन्होंने पुत्रों के समान प्यार करने योग्य भानजों (पांडवों) को छोड़ दिया और दुर्योधन के पक्ष में रहकर युद्ध करने का वचन दे दिया। उपप्लव्य में राजा शल्य का ख़ूब स्वागत किया गया। मामा को आया देखकर नकुल और सहदेव के आनंद की तो सीमा ही न रही। जब भावी युद्ध की चर्चा छिड़ी, तो शल्य ने युधिष्ठिर को बताया कि किस प्रकार दुर्योधन ने धोखा देकर उनको अपने पक्ष में कर लिया है।

युधिष्ठिर बोला—“मामा जी! मौक़ा आने पर निश्चय ही महाबली कर्ण आपको अपना सारथी बनाकर अर्जुन का वध करने का प्रयत्न करेगा। मैं यह जानना चाहता हूँ कि उस समय आप अर्जुन की मृत्यु का कारण बनेंगे या अर्जुन की रक्षा का प्रयत्न करेंगे? मैं यह पूछकर आपको असमंजस में नहीं डालना चाहता था, पर फिर भी पूछने का मन हो गया।”

मद्रराज ने कहा—“बेटा युधिष्ठिर, मैं धोखे में आकर दुर्योधन को वचन दे बैठा। इसलिए युद्ध तो मुझे उसकी ओर से ही करना होगा। पर एक बात बताए देता हूँ कि कर्ण मुझे सारथी बनाएगा, तो अर्जुन के प्राणों की रक्षा ही होगी।”

उपप्लव्य में महाराज युधिष्ठिर और द्रौपदी को मद्रराज शल्य ने दिलासा दिया और कहा—“जीत उन्हीं की होती है, जो धीरज से काम लेते हैं। युधिष्ठिर! कर्ण और दुर्योधन की बुद्धि फिर गई है। अपनी दुष्टता के फलस्वरूप निश्चय ही उनका सर्वनाश होकर रहेगा।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दुर्योधन ने सेवाभाव दिखाकर पांडवों के मामा को भी अपने पक्ष में कर लिया। इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव वाले लोग मीठा बोलकर और झूठी सेवा करके सरल स्वभाव के लोगों से छल करते हैं। ऐसे लोगों से सर्तक, सजग और सवाधान रहना बेहद आवश्यक है।

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