धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—136

भगवान श्रीकृष्ण दुनिया के पहले मैनेजमेंट गुरु थे। उन्होंने मैनेजमेंट का पहला मंत्र कर्म करने का दुनिया को दिया। कर्म के सिद्धांत में उनका गहरा विश्वास था। उन्होंने कहा कि कर्म कीजिए फल की इच्छा मत ​कीजिए। जब हम सार्थक कर्म करेंगे तो उसके परिणाम भी सार्थक आने तय है। श्रीकृष्ण ने साफ शब्दों में कहा कि जैसे कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा। उन्होंने कर्म सिद्धांत को सबसे ज्यादा महत्व दिया।

इसके साथ ही उन्होंने सफलता के लिए वचन का निभाने का मंत्र भी दुनिया को दिया। इसके लिए उन्होंने लंबी तैयारी की रुपरेखा भी दुनिया के सामने प्रस्तुत की। उनकी लीला में इसे साफ रुप से देखा भी जा सकता है। श्रीकृष्ण जानते थे कि उनके अवतार का मुख्य उद्देश्य कंस को मारकर वासुदेव और देवकी को मुक्त कराना है। अपने इस उद्देश्य को लेकर वे इतने प्रतिबद्ध थे कि बचपन से ही इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी थी। महज 11 साल की उम्र में उन्होंने नंदगांव, यशोदा मैया, राधा, बाल सखाओं और बचपन की यादों को सिर्फ इसलिए अलविदा कह मथुरा का रुख किया कि वे अपने कमिटमेंट के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। अपने कमिटमेंट को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने सभी प्रियों का त्याग तक कर दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हम श्री कृष्ण से सीख सकते हैं कि हमें अपने वचनों को हर हाल में पूरा करना चाहिए। भले इसके लिए हमें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। यदि हम अपने वचनों पर खरा उतरते है तो दुनिया हम पर विश्वास करेगी। बिजनेस में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कमिटमेंट और फेथ ही होता है। जो व्यापारी कमिटमेंट और फेथ पर खरा उतरता है, उसका व्यापार बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। इसलिए धर्मप्रेमी सज्जनों!यदि व्यापार में तरक्की चाहते हो तो भगवान श्री कृष्ण के कर्म सिंद्धात को अपनाते हुए उनकी तरह ही वचन और विश्वास पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करें।

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