धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—273

पुराने समय में एक राज्य में अकाल पड़ गया। इस वजह से राजा को बहुत नुकसान हुआ, उसे प्रजा से लगान भी नहीं मिल पाया। राजा को यह चिंता होने लगी कि व्यय कम कैसे हो सकता है, ताकि राज्य का काम चल सके। राजा को ये भी चिंता थी कि भविष्य में फिर अकाल न पड़ जाए, उसे पड़ोसी राजाओं का भी डर रहने लगा कि कहीं कोई हमला न कर दे।

राजा ने एक बार अपने कुछ मंत्रियों को उसके खिलाफ षडयंत्र रचते भी पकड़ा था। इन सभी परेशानियों की वजह से राजा को नींद भी नहीं आ रही थी। उसे भूख नहीं लगती थी। राजा को कई पकवान परोसे जाते, लेकिन वह खा नहीं पाता।

उस राजा के शाही बाग के एक माली था। राजा रोज उसे देखता था, वह प्याज और चटनी के साथ सात-आठ मोटी-मोटी रोटियां खा जाता था और हमेशा खुश रहता था। जब राजा के गुरु ने ये सब देखा तो उन्होंने राजा से कहा कि अगर आप राजकाज को लेकर परेशान है तो कुछ समय के लिए इसे मुझे सौंप दो और आप मेरे यहां नौकरी कर लो। मैं तो ठहरा साधू मैं आश्रम में ही रहूंगा, लेकिन इस राज्य को चलाने के लिए मुझे एक नौकर चाहिए। तुम पहले की तरह ही महल में रहो। राज सिंहासन पर बैठो और शासन चलाओ, यही तुम्हारी नौकरी होगी।

राजा खुश हुआ और उसने गुरु की बात मान ली और वह अपने काम को नौकरी की तरह करने लगा। फर्क कुछ भी नहीं था काम वही था, लेकिन अब राजा जिम्मेदारियों और चिंता से लदा हुआ नहीं था। कुछ महीनों बाद उसके गुरु आए। उन्होंने राजा से पूछा कहो तुम्हारी भूख और नींद का क्या हाल है। राजा ने कहा कि मालिक अब खूब भूख लगती है और आराम से सोता हूं।

गुरु ने राजा को समझाया कि सब कुछ पहले जैसा ही है, लेकिन पहले तुमने जिस काम को बोझ समझ रखा था। अब सिर्फ उसे अपना कर्तव्य समझ कर रहे हो। हमें ये जीवन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए मिला है। किसी चीज को अपने ऊपर बोझ की तरह लादने के लिए नहीं मिला है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, काम कोई भी हो, चिंता उसे और ज्यादा कठिन बना देती है। जो भी काम करें उसे अपना कर्तव्य समझकर ही करें। हमेशा खुश रहेंगे।

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