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सत्यार्थप्रकाश के अंश—15

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इस शरीर की चार अवस्था हैं। एक जो 16वें वर्ष से लेकर 25वें वर्ष पर्यन्त सब धातुओं को बढ़ाती है। दूसरा जो 25वें वर्ष के अन्त और 26वें वर्ष के आदि में युवावस्था का आरम्भ होता है। तीसरी जो पच्चीसवें वर्ष से लेकर चालीसवें वर्ष पर्यन्त सब धातुओं की पुष्टि होती है। चौथी तब सब साग्ङोपाङग शरीरस्थ सकल धातु पुष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं। तदनन्तर जो धातु बढ़ाता है वह शरीर में नहीं रहता, किन्तु स्वप्र, प्रस्वेदादि द्वारा बाहर निकल जाता है वही 40वां वर्ष उत्तम समय विवाह का है अर्थात् उत्तमोंत्तम तो अड़तालीसवें वर्ष में विवाह करना।
जो 25 वर्ष पर्यन्त पुरूष ब्रह्मचार्य करें तो 16 वर्ष पर्यन्त कन्या। जो पुरूष तीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचारी रहें तो स्त्री 22वर्ष, जो पुरूष छत्तीस वर्ष तक रहे तो स्त्री 18 वर्ष, जो पुरूष 40 वर्ष पर्यन्त तक रहें तो स्त्री 20 वर्ष, जो पुरूष 44 वर्ष तक रहे पर्यन्त तक रहे तो स्त्री 22 वर्ष, जो पुरूष 48 वर्ष तक ब्रह्मचारी रहे तो स्त्री 24 वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचार्य सेवन रखे अर्थात् 48 वें वर्ष से आगे पुरूष और 24वें वर्ष से आगे स्त्री को ब्रहा्रचार्य न रखना चाहिए, परन्तु यह नियम विवाह करने वाले पुरूष और स्त्रियों का है, जो विवाह करना ही न चाहें वे मरणपर्यन्त ब्रहा्रचारी रह सकते है, परन्तु यह काम पूर्ण विद्या वाले जितेन्द्रिय और विर्दोष योगी स्त्री—पुरूष का है। यह बड़ा कठिन काम है कि जो काम के वेग को थाम के इन्द्रियों को अपने वश में रखे।
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