एक गांव में भागचंद रहता था। युवा हुआ तो उसका विवाह भाग्यवती से कर दिया गया। भाग्यवती सुंदर थी लेकिन अहंकारी थी। उसे अपनी सुंदरता का अहंकार था। उसे अपने पिता की दौलत का अहंकार था। उसे अपने ऐश्वर्य का अहंकार था।
वो रोजाना भागचंद के सामने नई—नई डिमांड रख देती। भागचंद उसे पूरा करने में जी—जान से लगा रहता। दोनों खुशी से जी रहे थे। इसी दौरान गांव में सूखा पड़ गया। भागचंद का कामधंधा मंदा हो गया। सूखा लम्बा खिंचता चला गया तो भागचंद की जमापूंजी भी खत्म हो गई। लेकिन भाग्यवती की डिमांड ज्यों की त्यों रही।
भागचंद के लिए अब काफी मुश्किल होता जा रहा था भाग्यवती की डिमांड को पूरा करना। इसके चलते घर में भाग्यवती भागचंद को काफी बुरा—भला कहने लगी। वो अब उसे अपने पीहर के धन की अहंभरी कहानियां सुनाती और खूब जली—कटी सुनाती। भागचंद मन मसोस कर सब सुनता। समय बदला और गांव में जमकर बारिश हुई।
बारिश के होते ही गांव में फसल लहराने लगी। भागचंद का धंधा फिर से चमक उठा। वो अब रोजाना भाग्यवती के लिए कीमती समान ले जाने लगा। भाग्यवती एक बार फिर से भागचंद से प्रसन्न होकर घर को ठीक से संभालने लगी। समय अपनी गति से आगे बढ़ता गया और भाग्यवती के पास काफी सोने—हीरे—मोती के आभूषण और महंगे कपड़े एकत्रित हो गए। वो दिन—रात उनको देखकर प्रसन्न होती रहती।
एक दिन अचानक घर में आग लग गई। आग की लपटे इतनी भयानक थी कि सब कुछ जल रहा था। किसी तरीके से भागचंद ने भाग्यवती को बाहर निकाला। लेकिन इस दौरान उसे काफी चोट लगी। सारा कीमती समान जलकर राख हो गया। भाग्यवती की आंखों में आंसू थे। वो चिल्ला रही थी कि उसका सब कुछ चला गया।
लेकिन भागचंद एकदम शांत था। भाग्यवती की नजर अचानक भागचंद पर गई तो उसने पूछा—हमारा सब कुछ आग में जलकर राख हो गया। आपको इसका जरा—भी दु:ख नहीं। भागचंद ने बड़े शांत स्वर में कहा— सब कुछ नहीं..बस कुछ समान। भाग्यवती ने कहा—मतलब। भागचंद ने कहा हम दोनों बच गए और हमें क्या चाहिए। यदि हम इस आग में भस्म हो जाते तो…??
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी,सबसे ज्यादा कीमती हमारा जीवन है। जीवन है कि तो दुनियां की सम्पति को फिर से पाया जा सकता है। यदि जीवन ही नहीं बचा तो संसारिक सम्पति का कोई मूल्य नहीं रह जाता। इस सम्पति पर फिर किसी और का कब्जा हो जाता है। इसलिए जब तक जीवन है आपको प्रभू नाम की सम्पति को अर्जित करनी चाहिए।