धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 417

एक आदमी के मरने के बाद यम के दूत ने उससे पूछा कि तुम स्वर्ग में जाना चाहोगे या नर्क में। उस आदमी ने पूछा कि फैसला करने से पहले क्या मैं दोनों जगहें को देख सकता हूँ।

यम के दूत पहले उसे नर्क ले गए, वहाँ उसने एक बहुत बड़ा हॉल देखा जिसमें एक बड़ी मेज पर तरह-तरह की खाने की चीजें रखी थी।

उसने पीले और उदास चेहरे वाले लोगों की कतारें भी देखीं। वे बहुत भूखे जान पड़ रहे थे और वहां कोई हंसी-खुशी न थी।

उसने एक और बात पर गौर किया की उनके हाथों में चार फुट लंबे कांटे और छुरियाँ बँधी थी। जिनसे वे मेज के नीचे पर पड़े खाने को खाने की कोशिश कर रहे थे।

मगर वे खा नहीं पा रहे थे।

फिर वह आदमी स्वर्ग देखने गया। वहां भी एक बड़े हॉल में एक बड़ी मेज पर ढेर सारा खाना लगा था। उसने मेज के दोनों तरफ लोगों की लंबी कतारें देखी जिनके हाथों में चार फुट लंबी छुरी और काँटे बंधे हुए थे, ये लोग खाना लेकर मेज की दूसरे तरफ से एक-दूसरे को खिला रहे थे जिसका नतीजा था – खुशहाल, समृद्धि, आनंद और संतुष्टि।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, वे लोग सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोच रहे थे बल्कि सबकी जीत के बारे में सोच रहे थे। यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। जब हम अपने ग्राहकों, अपने परिवार, अपने मालिक, अपने कर्मचारियों की सेवा करते हैं तो हमें जीत खुद-ब-खुद मिल जाती है।

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