धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—27

एक समय की बात है के एक गांव में एक किसान रहता था जिसके दो पुत्र थे कर्म और धर्म। कर्म अक्सर बहुत ज्यादा मेहनत करता परन्तु फिर भी उसे ज्यादा कमाई नहीं होती थी और दूसरी तरफ़ उसके दुसरे पुत्र धर्मे को कोई ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। क्योंकि किस्मत कुछ ज्यादा ही उस पर मेहरबान थी। वो थोडा काम करके ही ज्यादा कमा लेता था।

उसका पिता अक्सर परेशान रहता था, क्योंकि उसका छोटा पुत्र धर्म अक्सर ज्यादा काम नहीं किया करता था। धर्म अक्सर मेहनत से ज्यादा अपनी किस्मत पर भरोसा किया करता था। वो हमेशा अपने पिता और बड़े भाई से इसी बात पर बहस करता रहता था कि किस्मत के दम पर ही सब कुछ हासिल किया जा सकता है।

एक दिन किसान ने उन दोनों को परखने के लिए खेतों में कुछ ना कुछ उगाने के लिए कहा। दोनों पुत्रों ने अपने–अपने खेतों में गेहूं की फ़सल बीज दी। कर्मे ने समय—समय पर अपनी फ़सल को पानी दिया समय पर उनमे अच्छी खाद डाली। आखिरकार फ़सल काटने का समय आया,कर्मे की फ़सल बहुत अच्छी हुई। दूसरी तरफ़ धर्मे की फ़सल कुछ ज्यादा अच्छी नहीं निकली, क्योंकि उसने अपनी फसलों को समय सिर पानी और खाद नहीं डाली और उसे अपनी किस्मत पर बहुत भरोसा था। धर्मे की फसल पानी और खाद की कमी के कारण अच्छी नहीं हुई । यह देखकर उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, उसने अपने पिता और भाई से अपनी गलती की माफ़ी मांगी और उनके साथ मेहनत करने का संकल्प लिया।

प्रेमी सुंदरसाथ, बिना कर्म किए फल की इच्छा करना बेकार है।

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