एक दिन, एक राजा एक संत से मिलने गया, जो एक शांत स्थान पर रहता था। राजा ने संत से कहा कि वह दुनिया में सबसे शक्तिशाली और धनी व्यक्ति है, लेकिन फिर भी वह खुश नहीं है।
संत ने राजा से कहा कि सच्चा सुख धन या शक्ति में नहीं, बल्कि संतोष और आंतरिक शांति में है। राजा ने संत की बात को समझने से इनकार कर दिया और कहा कि वह अपने धन और शक्ति से सब कुछ हासिल कर सकता है।
तब संत ने राजा को एक छोटा सा बर्तन दिखाया और कहा कि इसे सोने के सिक्कों से भर दो। राजा ने सोचा कि यह तो बहुत आसान काम है और उसने अपने खजाने से सिक्के लाकर बर्तन में डालने शुरू कर दिए।
लेकिन, जैसे ही राजा सिक्के डालता, वे गायब हो जाते थे। राजा ने बहुत सारे सिक्के डाले, लेकिन बर्तन कभी नहीं भरा। राजा हैरान था और उसने संत से पूछा कि यह क्या रहस्य है।
संत ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह बर्तन तुम्हारे मन का प्रतीक है। तुम्हारा मन कभी भी संतुष्ट नहीं होता, चाहे तुम उसे कितना भी धन, शक्ति या ज्ञान दे दो।” राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सीखा कि सच्चा सुख धन या शक्ति से नहीं, बल्कि संतोष और आंतरिक शांति से मिलता है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा संतुष्ट रहना चाहिए। सच्चा सुख धन या शक्ति में नहीं, बल्कि संतोष और आंतरिक शांति में है। हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा संतुष्ट रहना चाहिए। मन को शांत और स्थिर रखना चाहिए। भगवान की भक्ति से मन को शांति मिलती है।