धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 593

एक राजा को नई-नई चीजें जानने और समझने का बहुत शौंक था। उसने मंत्रियों को अपने लिए एक योग्य गुरु की खोज करने का आदेश दिया, ताकि उसे और कुछ नया ज्ञान मिल सके। मंत्रियों ने कुछ ही दिनों में एक श्रेष्ठ गुरु को खोज निकाला। राजा ने गुरु को प्रणाम किया और उनसे पढ़ना शुरू कर दिया। गुरु रोज राजा को पढ़ाते, राजा भी पूरा मन लगाकर गुरु की बातों को ध्यान से सुनते-समझते थे।

लंबे समय तक ऐसा ही चलता रहा, लेकिन राजा को कोई विशेष लाभ नहीं मिला। राजा अब परेशान रहने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह ज्ञान हासिल क्यों नहीं कर पा रहा है। गुरु की योग्यता पर सवाल उठाना सही नहीं था, क्योंकि वे काफी विद्वान थे। एक दिन राजा ने ये बात रानी को बताई। रानी ने राजा को सलाह दी कि ये बात आपको अपने गुरु से ही पूछनी चाहिए।

अगले दिन राजा ने गुरु से पूछा कि आप मुझे काफी दिनों से शिक्षा दे रहे हैं, लेकिन मुझे लाभ नहीं मिल रहा है। कृपया मुझे बताएं ऐसा क्यों हो रहा है? गुरु ने कहा कि राजन् इसका कारण बहुत ही सामान्य है। आप अपने अहंकार की वजह से ये छोटी सी बात समझ नहीं पा रहे हैं। आप बहुत बड़े राजा हैं, मुझसे हर स्थिति में आगे हैं, शक्ति, पद-प्रतिष्ठा और धन-संपत्ति, हर मामले में आप मुझसे श्रेष्ठ हैं। आपका और मेरा रिश्ता गुरु और शिष्य का है। गुरु हमेशा ऊंचे स्थान पर ही बैठता है, लेकिन यहां आप राजा होने की वजह से अपने सिंहासन पर बैठते हैं और मैं गुरु होकर भी आपके नीचे बैठता हूं। इसी वजह से आपको शिक्षा का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

जो हमें ज्ञान देता है, वह हर स्थिति में सम्मानीय है और ऊंचे स्थान पर बैठने के योग्य है। राजा को गुरु की बातें समझ आ गई और उसे अपनी गलती का अहसास हो गया। अगले दिन से राजा ने गुरु को बैठने के लिए ऊंचा स्थान दिया और स्वयं नीचे बैठने लगा। इसके बाद उसे शिक्षा का लाभ मिलना शुरू हो गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब तक कोई व्यक्ति अपने गुरु को पूरा सम्मान नहीं देता है, तब तक वह ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता है। गुरु हर स्थिति में पूजनीय है। गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना जाता है।

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