एक बार राजा युधिष्ठिर ने यज्ञ करवाया और उसके बाद उन्होंने ब्राह्मणों को इतना दान दिया कि वो अपने साथ उसे नहीं ले जा सके। इस पर अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे मुरलीधर! मेरे भाई युधिष्ठिर जैसा कोई भी दानी इस संसार मे नही है। तब श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन! दान की लिस्ट मे तुम्हारे भाई युधिष्ठिर का नाम सबसे नीचे है। तब अर्जुन ने कहा कि अच्छा आप ही बताइये दान की श्रेणी मे सबसे ऊपर नाम किसका है? तब श्री कृष्ण ने कहा कि मोरध्वज।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मोरध्वज एक ऐसे राजा थे जो ब्राह्मणों की इच्छानुसार दान देते थे। अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण की बातों पर विश्वास न हुआ। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि हमें विश्वास नही है। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि परीक्षा लेकर देख लेते है। इस पर अर्जुन मान गये। तब श्री कृष्ण ने यमराज को बुलाया और यमराज को एक बूढ़ा शेर बना दिया और अर्जुन तथा भगवान श्री कृष्ण दोनों ने ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया। अब तीनों राजा मोरध्वज के महल मे पहुंच गये और बोले—भिक्षामदेही।
तब राजा मोरध्वज ब्राह्मण के पास गये और बोले कि अहो भाग्य! हमारे जो आप हमारे यहाँ पधारे। कहिये, ब्राह्मण देवता हम आपकी क्या सेवा कर सकते है? तब ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने मोरध्वज से कहा कि हे राजन! हमारा शेर बहुत बूढ़ा हो चुका है। इसके दाँत भी नही है। इसीलिये सबसे पहले आप हमारे शेर को मांस खिलाइये। तब राजा मोरध्वज ने कहा कि ठीक है ब्राह्मण देवता! मैं आपके इस शेर को अपने शरीर का मांस काटकर दूँगा जो कि मुलायम है और यह खा भी लेगा। तब ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने कहा कि नहीं मोरध्वज! आप बूढ़े हो चुके है। इसीलिये आपका मांस काफी सख्त हो गया है जो कि हमारे शेर के लिये सही नही है।
आपके यहाँ एक पाँच वर्ष का बालक है, आपको उसको आरे से बीच से काटकर उसके मुलायम मांस को आपको हमारे शेर को खिलाना होगा। तब राजा मोरध्वज काफी आश्चर्य चकित हो गये और सोच विचार करने लगे। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, क्योंकि मोरध्वज की एक ही संतान थी जिसका नाम ताम्रध्वज था जो कि पाँच वर्ष का बालक था। मोरध्वज के बुढ़ापे का एकमात्र सहारा था। मोरध्वज सोच ही रहे थे कि उनका छोटा बेटा ताम्रध्वज आ गया और बोला कि हे पिताजी! आप इतना क्या सोच रहे हो? आप अपने धर्म की रक्षा के लिये खुशी-खुशी हमारा बलिदान कर दो। मैं आपके कुछ काम आ सकूं, यह तो हमारा सौभाग्य होगा।
तब राजा मोरध्वज अपनी रानी के पास गये और सारी कहानी कह सुनाई और बोले कि क्या इस काम में तुम मेरा साथ दोगी? रानी बोली कि हे महाराज! धर्म की रक्षा के लिये मैं ऐसे अनेकों बालकों को कुर्बान कर सकती हूँ। अतः आप धर्म का पालन करें। तब राजा मोरध्वज ने एक आरा मंगवाया और एक तरफ मोरध्वज तथा दूसरी तरफ रानी और बीच मे ताम्रध्वज बैठ गया जब राजा मोरध्वज आरा चलाने ही वाले थे।
तब ताम्रध्वज ने अपने माता पिता को रोक दिया और कान में डालने के लिये रूई लेकर आया और बोलने लगा कि इस रूई को अपने-अपने कान मे डाल लो, ऐसा इसलिये कि जब आप लोग हमें बीच से काटोगे तो दर्द के मारे मेरी चीख निकलेगी उस चीख को सुनकर यदि आप लोगों ने आरा रोक दिया तो आपका धर्म नष्ट हो जायेगा। इसीलिये मैं कितना भी चीखू कितना भी चिल्लाऊ आपको आरा नही रोकना है।
फिर राजा और रानी दोनों ने अपने-अपने कान मे रूई डाल दी और आरे से ताम्रध्वज को बीच से फाड़ दिया। खून की फुहार निकलने लगी यह देखकर ताम्रध्वज की माँ की आँखों मे आँसू आ गये। तब ब्राह्मण ने कहा कि हे रानी! आँख से आँसू नही गिरना चाहिये वरना हमारा शेर मांस को नही खायेंगा। तब शेर ने बच्चे का एक हिस्सा खा लिया तथा दूसरे हिस्से को बाहर भिकवा दिया गया। अब ब्राह्मणों ने कहा कि राजन! अब हमें भोजन करवाओ। तब राजा मोरध्वज ने ब्राह्मणों को भोजन करवाने लगे। जैसे ही ब्राह्मणों ने पहले भोजन का निवाला मुंह में डालने चले उसे वापस रख दिया और कहा कि हे राजन! तुम हत्यारे हो इसीलिये हम तुम्हारे यहाँ भोजन नहीं कर सकते है। तुमने अपने बेटे की हत्या की है।
तब राजा मोरध्वज कहने लगे कि हे ब्राम्हण देवता! आपने ही तो बोला था, हमारे बेटे को मारने के लिये। तब ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने कहा अब चाहे जो भी हो आप हत्यारे है इसीलिये हम आपके यहाँ भोजन नही कर सकते है। इतना कहकर दोनों ब्राह्मण और वह शेर राजदरबार से बाहर चले गये। तब राजा मोरध्वज रोने लगे और कहने लगे कि बेटा तूने मरकर हमारे धर्म की रक्षा की है अब जीवित होकर तुम्हें धर्म की रक्षा करनी है। यदि हमारे दरबार से ब्राह्मण भूखा ही चला जाये तो मेरे इतना दान पुण्य करने का क्या मतलब निकला?
बेटा! अब तुम्हें ही हमारे धर्म की रक्षा के लिये आना होगा। अंदर से ताम्रध्वज की आवाज आती है कि पिताजी मुझे आपके धर्म की रक्षा के लिये वापस आना ही पड़ा। इतने में जब मोरध्वज पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ शेर और ब्राम्हण कोई भी नही था। वहाँ पर तो भगवान श्री कृष्ण अपने चतुर्भुज रूप मे हाथ मे शंख, चक्र, गधा, पुष्प धारण किये हुये खड़े थे। श्री कृष्ण और अर्जुन की आँखों से आँसू गिर रहे थे। श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज से कहा कि हे राजा! तू सबसे बड़ा दानी है। तेरे जैसा दानी न तो पहले कभी पैदा हुआ था और न ही भविष्य मे कभी पैदा होगा।
मोरध्वज और उसके परिवार का धर्म के त्याग और दान देने की प्रबल इच्छा को देखकर अर्जुन का अहंकार चूर—चूर हो चुका था। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हम ऐसे स्नातन धर्म में पैदा हुआ है जहां धर्म के लिए हमरे पूर्वजों से स्वयं का और अपनी संतानों का हंसते—हंसते बलिदान कर दिया। हमें स्नातन होने पर गर्वित होना चाहिए।