धर्म

ओशो : मन का परदा

जो अपने चित्त से वासनाओं और सपनों की फिल्मों को हटा लेता हैं और जो उन फिल्मों के निर्मित करने वाले मूलस्त्रोंत को तोड़ देता है- जो कह देता है कि अब और नहीं, अब मैं बिना सपने के जिऊगां, अब मेरी आंख सपने से खाली होगी,अब मैं सपनों को अपनी आंख में नहीं बसाऊंगा अपनी आंखो में डेरा न करने दूंगा, अब मैं सपनों को मेहमानदारी अपने भीतर न करने दूंगा, नमस्कार, सपनों को जो नमस्कार कर लेता हैं, और आखिरी विदा दे देता है- और आंखे खाली हो जाती है, मन भी खाली हो जाता है। क्योंकि मन सपनों से ही भरा हैं। मन में और भराव क्या हैं? मन की और सम्पदा क्या हैं? -सपने ,कल्पनाएं, आकांक्षाए, वासनाएं, तृष्णएं । एक शब्द में वे सब सपने का ही नाम हैं।

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जैसे ही मन खाली होता है, परदा सफेद हो जाता है, चित्र खो जाते हैं। फिर न रोना है न हंसना हैं, न सुख है न दुख हैं। क्योंकि सुख और दुख उन चित्रों के कारण होते थे। न फिर द्वेष है न राग हैं। द्वंद्व गया। वे द्वंद्व भी उन चित्रों के कारण होते थे। सफेद परदा रह गया। और सफेद परदे के साथ ही शांति का अनुभव शुरू होता है। एक अर्पूव शांति भीतर सघन हो जाती हैं। अब सफेद परा है , न कुछ हिलता है न कुछ डुलता हैं। पहले भी नहीं हिला था।

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तुमने खयाल किया, जब सफेद परदे पर कोई फिल्म चल रही हो… तुफान आया है, भारी तुफान आया है फिल्म में। झाड़-झंखाड़ गिरे जा रहे हैं, पहाडं कंप रहे हैं, भूकम्प आया हैं, नावे डूब रही हैं, जहाज पानी में नष्ट हुए जा रहे हैं,भव गिर रहे हैं,- तब भी तुम सोचते हो,परदा कंप रहा होगा तूफान के कारण? परदा कंप भी नहीं रहा है। यह सारा तूफान इतने बड़े मकानों को गिराना, यह महलों का भूमिसात हो जाना, यह पहाड़ो का कंपना ,ये बड़े-बड़े दरख्त,इनकी जड़ें उखड़ जानीं, यह लोगों का मरना ,यह जहाजों का डूबना- यह सब हो रहा है। लेकिन क्या तुम सोचते हो जिस परदे पर यह जो हो रहा है ,वह परदा जरा भी कंप रहा हैं? उसमें कंपन भी हो रहा हैं ? उसमें कोई भी कंपन नहीं हो रहा हैं। उसे पता ही नहीं इस तूफान का। यह तूफान सिर्फ तुम्हारी कल्पना में हो रहा है। परदे के लिए हुआ ही नहीं।

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ऐसा ही एक परदा तुम्हारे भीतर है,जिसको ज्ञानियों ने साक्षी कहा है। सफेद है परदा। उस पर कुछ कभी नहीं हुआ, न कभी वहां कुछ हो सकता हैं। वहा सदा से शांति हैं। वहां सदा से शून्य विराजमान हैं। उसको अनुभव कर लेना, सत्य को अनुभव करा है। उसको जानना हैं, ब्रह्म को जानना है। उसको जानते हो, व्यक्ति, ब्राह्मण हो जाता है। सपनों में खोए रहना-शूद्र। सत्य के प्रति जाग जाना- ब्रह्मण।
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