जो सदा सदाचार में प्रवृत्त,जितेन्द्रिय और जिन का वीर्य अध:स्खलित कभी न हो उन्ही का ब्रहा्रचर्य सच्चा और वे ही विद्वान होते हैं। इसलिये शुभ लक्षणयुक्त अध्यापक और विद्यार्थियों को होना चाहिये।
अध्यापक लोग ऐसा यत्न किया करें जिस से विद्यार्थी लोग सत्यवादी,सत्यमानी,सत्यकारी सभ्यता,जितेन्द्रिय,सुशीलतादि शुभगुणयुक्त शरीर और आत्मा का पूर्ण बल बढ़ा के समग्र वेदादि शास्त्रों में विद्वान् हों। सदा उन की कुचेष्टा छुड़ाने में और विद्या पढ़ाने में चेष्टा किया करें और विद्यार्थी लोग सदा जितेन्द्रिय,शान्त, पढ़ानेहारों में प्रेम,विचारशील,परिश्रमी होकर ऐसा पुरूषार्थ करें जिस से पूर्ण विद्या,पूर्ण आयु,परिपूर्ण धर्म और पुरूषार्थ करना आ जाय इत्यादि ब्रहा्रण वर्णो के काम हैं। क्षेत्रियों का कम्र्म राजधर्म में कहेंगे।जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
जो वैश्य हों वे ब्रहा्रचर्यादि से वेदादि विद्या पढ़ विवाह करने नाना देशों की भाषा, नाना प्रकार के व्यापार की रीति,उन भाव जानना,बेचना,खरीदना द्वीपद्वीपान्तर में जाना आना,लाभार्थ काम को आरम्भ करना, पशुपालन और खेती की उन्नति चतुराई से करनी करानी,धन को बढ़ाना,विद्या और धर्म की उन्नति में व्यय करना,सत्यवादी निष्कपटी होंकर सत्यता से सब व्यापार करना,सब वस्तुओं की रक्षा ऐसी करनी जिस से कोई नष्ट न हाने पावे।
शुद्र सब सेवाओं में चतुर,पाकविद्या में निपुण,अतिप्रेम से द्विजों की सेवा और उन्ही से अपनी उपजीविका करे और द्विज लोग इसके खान ,पान,वस्त्र,स्थान,विवाहादि में जो कुछ व्यय हो सब कुछ देवें अथवा मासिक कर देंवे।
चारो वर्ण परस्पर प्रीति,उपकार,सज्जनता,सुख,दु:ख,हानि,लाभ में ऐकमत्य रहकर राज्य और प्रजा कह उन्नति में तन,मन,धन का व्यय करतें रहें।
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