धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—539

एक बार गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ एक जंगल से हो के गुजर रहे थे। उस दिन कड़ी धूप की वजह से गर्मी भी ज्यादा थी जिस वजह से कुछ दूर चलने के बाद गुरु गोरखनाथ जी ने अपने शिष्यों से कहा कि आओ इस पेड़ के नीचे बैठकर कुछ देर आराम कर लेते हैं फिर आगे की यात्रा शुरु करेंगे।

गुरु का आदेश पाते ही सभी शिष्य उसी पेड़ के नीचे आराम करने लगे। अभी आराम किए कुछ देर ही हुआ था कि उनके सबसे प्रिय शिष्य औघरनाथ ने उनसे कहा कि, ‘गुरूदेव हम सभी को दो कबूतरों की कथा सुनाइए जिसमे प्रेम के चलते पूरा परिवार नष्ट हो गया था।’ तब गुरु गोरखनाथ जी ने कहा, ‘औघरनाथ अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो चलो मैं सुनाता हूं।’ फिर गोरखनाथ जी ने कथा कहना शुरु किया।

पौराणिक समय में एक जंगल में एक पेड़ पर दो बहुत ही सूंदर कबूतर और कबूतरी घोंसला बनाकर रहा करते थे। दोनों एक दूसरे से काफी प्रेम किया करते थे। उस कबूतर और कबूतरी में इतना प्रेम था कि एक दूसरे की इच्छापूर्ति के लिए वो दोनों कोई भी कष्ट उठाने से नहीं डरते थे। इसी तरह समय के साथ-साथ दोनों में प्यार बढ़ता गया और फिर शुभ समय आने पर कबूतरी ने दो अंडे दिए।

उसके बाद अंडों की वो दोनों ही बड़े प्यार से देखभाल करने लगे और फिर कुछ दिन बाद उन अंडों से दो बड़े ही प्यारे बच्चे निकले। ये देख कर कबूतर और कबूतरी का चेहरा खिल उठा। उन दोनों को ऐसा लग रहा था कि मानो दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई हो लेकिन कुछ दिन बाद ही उनकी इन खुशियों को ग्रहण लग गया।

एक दिन की बात है, प्रतिदिन की तरह कबूतर और कबूतरी सुबह के समय अपने बच्चों को घोंसले में छोड़कर दाना चुगने निकल गए। उस दिन दोपहर के समय जंगल में एक शिकारी आ गया। वो सुबह से ही शिकार की तलाश में था लेकिन अभी उसे कुछ भी हाथ नहीं लगा था, ये सोच कर वो दुखी हो गया और पेड़ के नीचे बैठ गया। फिर अपने मन में सोचने लगा कि आज सुबह से मैं इस जंगल में यूं ही घूम रहा हूं और भूख के मारे मेरी जान निकल रही है और उधर बच्चे भी भूख से तड़प रहे होंगे, मेरे आने की राह देख रहे होंगे।

इस तरह कुछ और समय बीत गया और अब शाम होने वाली थी कि तभी उसकी नजर उस घोंसले पर गई जहां कबूतर के दोनों बच्चे बैठे हुए थे। ये देखकर शिकारी की आंखों में एक चमक सी आ गई और उसने मन ही मन में बोला कि देर आए पर दुरुस्त आए। आज तो मजा ही आ जाएगा। इन्हें बेचकर बाजार में खूब धन प्राप्त करूंगा जिससे मेरे परिवार के लिए कई दिनों के भोजन का इंतजाम भी हो जाएगा। इतना कहकर वो कबूतरों के बच्चे को पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ गया और फिर उन्हें पकड़ कर अपने जाल में रख लिया और वहां से जाने लगा कि तभी कबूतर और कबूतरी वहां आ गए और अपने बच्चों को घोंसले में न पाकर बैचैन हो गए और इधर-उधर देखने लगे।

तभी कबूतरी की नजर शिकारी के जाल पर गई और देखते ही समझ गई कि इसी शिकारी ने मेरे बच्चों को पकड़ लिया है। फिर कबूतरी शिकारी के पास गई और बोली अरे छोड़ दो मेरे मासूम बच्चों को। इन दोनों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? ये सुनकर शिकारी कबूतरी से बोला कि बड़ी मुश्किल से ये दोनों शिकार मिले हैं और तुम कहती हो कि मैं इन्हे छोड़ दूं! मैं इन्हे नहीं छोडूंगा, तुम्हें जो करना है कर लो।

ये सुनकर कबूतरी बोली कि अगर तुम मेरे बच्चों को नहीं छोड़ोगे तो मैं इस संसार में जी कर क्या करुंगी। मैं भी तुम्हारे पास ही आ रही हूं। इतना कहकर कबूतरी खुद उस शिकारी के जाल में चली गई। उधर, जब कबूतर ने देखा कि पहले उसके दोनों बच्चे और अब कबूतरी भी शिकारी की कैद में है तो भला मैं अकेला जिंदा रहकर क्या करूंगा।

यही सोचकर उसने भी शिकारी से कहा कि रुको मैं भी तुम्हारे पास आ रहा हूं। इस तरह जहां एक तरफ पूरे परिवार ने आपसी प्रेम के चलते मृत्यु को गले लगा लिया। वहीं, शिकारी ने उन चारों कबूतरों को बाजार में बेचकर खूब सारा धन कमाया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, गुरु गोरखनाथ ने हमें ये समझने की कोशिश की है कि इस मृत्युलोक में हर प्राणी को उतना ही मिलता है जितना उसके भाग्य में लिखा होता है और प्रेम से बड़ा कोई धन नहीं है।

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