धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—305

एक व्यक्ति पैसा कमाने के लिए अपना गांव छोड़कर पास के बड़े नगर में पहुंचा। कई महीनों तक वह अपने गांव से दूर ही रहा। गांव में उसका बड़ा और सुंदर घर था। जब उसने बहुत पैसा कमा लिया तो वह अपने गांव लौट आया।

गांव पहुंचकर उसने अपना घर जलते हुए देखा। गांव के लोग दूर खड़े होकर जलता हुआ घर देख रहे थे। उस व्यक्ति को समझ नहीं आया कि अब क्या करना चाहिए? वह दुखी हो गया और सभी लोगों से घर को बचाने के लिए गिड़गिड़ाने लगा। लेकिन, कोई भी उसकी मदद करने को तैयार नहीं था।

तभी उस व्यक्ति का बड़ा बेटा वहां पहुंचा और उसने कहा कि पिताजी आप इतना दुखी क्यों हो रहे हैं? पिता बोले कि हमारा घर जल रहा है और तुम पूछ रहे हो कि दुखी क्यों हो रहे हो?

बेटे ने कहा कि पिताजी हमने ये घर कुछ ही दिन पहले बेच दिया है। ये बात सुनकर उस व्यक्ति का मन शांत हो कि उसका नुकसान नहीं हुआ। अब वह भी भीड़ के साथ वहीं खड़े होकर जलते हुए घर को देखने लगा।

कुछ देर बाद उसका दूसरा बेटा वहां पहुंचा। उसने कहा कि पिताजी अपना घर जल रहा है और चुपचाप खड़े हैं, इसे बचाने के लिए कुछ करें।

पिता बोले कि बेटा तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बेच दिया है। इसीलिए हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है। तब दूसरे बेटे ने कहा ये ठीक है कि हमने घर बेच दिया है, लेकिन अभी तक हमें पैसा मिला नहीं है। अगर खरीदार ने पैसे देने से मना कर दिया तो क्या होगा?

ये बात सुनते ही वह व्यक्ति फिर से चिल्लाने लगा कि मेरे घर को बचा लो। भीड़ में से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वह जलते घर के पास पहुंचे। तभी उस व्यक्ति का तीसरा बेटा वहां पहुंच गया। उसने अपने पिता से कहा कि पिताजी चिंता न करें, हमें खरीदार से पैसे मिल गए हैं। ये सुनकर वह व्यक्ति फिर से सामान्य हो गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सुख-दुख हमारी मानसिकता पर निर्भर करते हैं। अगर हमारी सोच सकारात्मक रहेगी तो मन शांत रहेगा। इस कहानी में जब तक व्यक्ति जलते हुए घर से जुड़ा हुआ था, तब तक वह दुखी था, लेकिन जैसे ही उसने अपने आप को घर से अलग किया, वह शांत हो गया। ठीक इसी तरह अगर हम भी दुख देने वाली और बुरी बातों से खुद को दूर कर लेंगे और अच्छा सोचने लगेंगे तो दुखों का असर हमारे ऊपर नहीं हो पाएगा।

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