एक गांव में संत ज्ञानेश्वर का कथावाचन चल रहा था। अपनी कथा में संत ज्ञानेश्वर समझा रहे थे कि ईश्वर ज्ञान, विवेक, शक्ति और भक्ति हमेशा सत पात्रों को ही देता है। संत के ऐसा कहने पर कथा सुनने आई गांव की ही एक महिला ने कहा मैं आपसे असहमत हूं। वह बोली,” अगर सबकुछ सत पात्रों को ही मिलना है, तो फिर इसमें भगवान की क्या विशेषता रही? उसकी नजरों में तो सब समान होने चाहिए। उसे तो सबको समान अनुदान देना चाहिए।”
संत ने उस समय महिला को कोई जवाब नहीं दिया। कथा समाप्त हो गई। वह महिला और बाकी लोग वहां से चले गए। संत ज्ञानेश्वर ने अगले दिन सुबह ही मोहल्ले के एक मूर्ख व्यक्ति को बुला कर कहा अमुक स्त्री के पास जाकर उस के आभूषण मांग लाओ। वह व्यक्ति वहां से चला गया और स्त्री के पास जाकर उससे उसके आभूषण मांगने लगा।
उस महिला ने उसे आभूषण देने से मना कर दिया और वहां से झीड़क कर भगा दिया। थोड़ी देर बाद संत ज्ञानेश्वर उस महिला के पास पहुंचे और बोले, “आप कुछ समय के लिए अपने आभूषण मुझे दे दे। आवश्यक काम खत्म करके मैं उसे आपको वापस लौटा दूंगा।”
महिला ने तुरंत ही अपना संदूक खोला और बिना कोई प्रश्न पूछे अपने आभूषण संत को सौंप दिए। उन आभूषणों को हाथ में लेकर संत ने महिला से पूछा, “अभी कुछ देर पहले एक व्यक्ति आपके पास आभूषण लेने आया था। आपने उसे आभूषण देने से मना क्यों कर दिया।”
महिला ने कहा, “मैं उस मूर्ख व्यक्ति को कैसे अपने मूल्यवान आभूषण दे सकती थी।”
संत ज्ञानेश्वर मुस्कुराए और बोले, “जब आप अपने इन सामान्य से आभूषणों को बिना सोचे विचारे किसी कुपात्र को नहीं दे सकती, तो सोचिए फिर परमात्मा अपने अनुदानों को अपात्रों को कैसे सौंप सकता है? ईश्वर तो बारंबार इस बात की परीक्षा करता है कि जिसको अनुदान दिया जा रहा है वह इस का पात्र भी है अथवा नहीं!”
महिला को संत ज्ञानेश्वर की बात समझ में आ गई। उसने उन्हें धन्यवाद कहा। संत ज्ञानेश्वर अपनी शिक्षा देकर वहां से चले गए।