धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—564

महाभारत युद्ध के अंतिम चरण में अश्वथामा पांचों पांडवों को मार डालना चाहता था। उसने चुपचाप पांडवों के शिविर में प्रवेश किया और पांडवों को सोता हुआ समझकर द्रौपदी के पांचों पुत्रों को मार दिया। पुत्रों की मृत्यु से सभी पांडव बहुत दुखी हुए। उन्होंने अश्वथामा को बंदी बना लिया।
पांडव अश्वथामा को पकड़कर द्रौपदी के सामने ले आए। पांडवों ने द्रौपदी से कहा कि अश्वथामा ने जो कृत्य किया है, उसकी सजा तुम निर्धारित करो। तुम कहो तो हम अभी इसे मृत्युदंड दे देते हैं। द्रौपदी के पांचों पुत्र मारे जा चुके थे, लेकिन उसकी ममता अभी जीवित थी। उसने पांडवों से कहा कि नहीं, इसे मृत्यु दंड नहीं देना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि पुत्रों की मृत्यु पर जो पीड़ा मुझे हो रही है, वही पीड़ा गुरु माता कृपी को भी हो। द्रौपदी ने यहां मातृत्व का संदेश दिया।

सभी पांडवों ने द्रौपदी की भावनाओं को समझकर अश्वथामा के ललाट की मणि निकालकर उसे कुरूप बना दिया और ममता का सम्मान करते हुए गुरु द्रोणाचार्य और माता कृपी के पुत्र को जीवित छोड़ दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, एक मां दूसरी मां की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकती है। कोई भी मां ये नहीं चाहती है कि दूसरों के बच्चों को किसी तरह की कोई परेशानी हो। इसी का मां की ममता कहते हैं।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

सत्यार्थप्रकाश के अंश—13

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 559

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 389

Jeewan Aadhar Editor Desk