एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ वन में प्रवास कर रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति एक पेड़ के नीचे बैठा बार-बार आहें भर रहा है। उसका चेहरा भय और चिंता से भरा था। संत ने करुणा से पूछा, “वत्स, तुम्हें क्या कष्ट है?”
वह व्यक्ति बोला, “महाराज, जीवन में हर समय डर लगा रहता है—भविष्य की चिंता, लोगों की बातें, असफलता का भय। समझ नहीं आता कि सही क्या है और गलत क्या।”
संत मुस्कराए। उन्होंने रात को उसे अपने पास बुलाया। रात को वो व्यक्ति संत के पास आया तो उन्होंने रस्सी उठाई और उस पर फेंक दी। व्यक्ति घबरा गया और चिल्लाया, “महाराज! यह तो साँप है!”
संत ने दीपक जलाया और बोले, “ध्यान से देखो।”
प्रकाश होते ही वह व्यक्ति शांत हो गया—वह साँप नहीं, साधारण रस्सी थी। संत बोले, “वत्स, जब तक अज्ञान का अंधकार रहता है, तब तक भय, चिंता और भ्रम हमें घेर लेते हैं। जैसे ही सही ज्ञान का प्रकाश मिलता है, सब अपने आप समाप्त हो जाता है।”
फिर संत ने समझाया, “जीवन की अधिकतर परेशानियाँ भी इसी रस्सी जैसी हैं। हम उन्हें अपने भ्रम से बड़ा और डरावना बना लेते हैं। सही ज्ञान—स्वयं को जानना, सत्य को समझना—ही सच्ची मुक्ति है।”
उस व्यक्ति के चेहरे पर शांति छा गई। वह बोला, “आज समझ आया महाराज, समस्या बाहर नहीं, मेरी समझ में थी।”
संत ने आशीर्वाद दिया और कहा, “जो व्यक्ति सही ज्ञान को धारण कर लेता है, वह चिंता, डर और भ्रम से स्वतः दूर हो जाता है।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब जीवन में सही ज्ञान और विवेक आ जाता है, तो मन शांत हो जाता है और भय अपने आप मिट जाता है।








