एक व्यक्ति गौतम बुद्ध का प्रवचन सुनने रोज आया करता था और बड़े ही ध्यान से उनकी बातें सुनता था। बुद्ध अपने प्रवचनों में लालच, मोह, बैर और अहंकार छोड़कर जीवन में सुख-शांति बनाए रखने की बातें किया करते थे। एक दिन वह व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आया और बोला कि – तथागत! मैं लगभग एक माह से आपके सभी प्रवचन सुन रहा हूं। क्षमा करें, उनका मुझ पर कोई असर नहीं हो रहा है। आपके कही गई हर एक बात सत्य है, लेकिन फिर भी मुझ पर इनका कोई असर नहीं हो रहा है। इसका क्या कारण है? क्या मुझमें कोई कमी है?
गौतम बुद्ध ने शांति से उसकी बातें सुनी और उस व्यक्ति से पूछा कि तुम कहां रहते हो? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि में श्रावस्ती में रहता हूं।
बुद्ध ने पूछा ये जगह यहां से कितनी दूर है? उस व्यक्ति ने जगह की दूरी बताई। इसके बाद बुद्ध ने फिर पूछा, तुम वहां कैसे जाते हो?
व्यक्ति ने बताया कि कभी घोड़े पर, कभी बैलगाड़ी पर बैठकर जाता हूं। बुद्ध ने फिर पूछा कि तुम्हे वहां पहुंचने में कितना समय लगता है?
व्यक्ति ने पहुंचने का समय भी बता दिया। इसके बाद बुद्ध ने अंतिम प्रश्न पूछा कि क्या तुम यहां बैठे-बैठे ही श्रावस्ती पहुंच सकते हो? इस प्रश्न के जवाब में व्यक्ति ने कहा कि तथागत ये कैसे हो सकता है? इसके लिए तो चलना पड़ेगा, तभी मैं वहां पहुंच सकता हूं।
बुद्ध ने कहा कि सही बात है। हम चलकर ही हमारे लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। ठीक इसी प्रकार जब तक हम अच्छी बातों का पालन नहीं करेंगे, उन पर चलेंगे नहीं, तब तक हम पर प्रवचनों का कोई असर नहीं होगा।
व्यक्ति को बुद्ध की बातें समझ आ गई और उस दिन के बाद उसने भी बुद्ध के बताए मार्ग पर चलना शुरू कर दिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सत्संग में आने से कोई धार्मिक नहीं बन पाता और ना ही किसी का कल्याण हो सकता है। यदि कल्याण चाहते हो तो सत्संग में बताई बातों को अपने जीवन में उतारना होगा।