धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—578

एक बार संत कबीर अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त थे, वे कपड़े बुन रहे थे। तभी एक युवक उनके पास आया और विनम्रता से प्रणाम किया। कबीर ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा और सहजता से बोले कि तुम्हारे प्रणाम में ही झलक रहा है कि तुम कुछ परेशान हो। क्या बात है?

युवक ने संकोच के साथ उत्तर दिया कि गुरुदेव, मेरी गृहस्थी में बहुत कलह है। पत्नी और मेरे बीच कोई तालमेल नहीं बन पाता। बात-बात पर बहस होती है। मैं बहुत परेशान हूं। कृपया कोई समाधान बताइए।

कबीरदास जी युवक की बात सुनकर बोले कि मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या का हल समझाता हूं। कुछ देर यहीं रुको। इसके बाद कबीरदास जी ने उन्होंने अपनी पत्नी लोई को आवाज दी और कहा कि एक लालटेन लेकर आओ और जलाकर लाना।

दोपहर का समय था, चारों ओर उजाला फैला हुआ था। युवक ने आश्चर्य से सोचा कि ऐसे समय लालटेन क्यों मंगाई जा रही है, कुछ ही देर में कबीर जी की पत्नी बिना किसी प्रश्न के जलती हुई लालटेन लेकर आ गईं और चुपचाप रखकर लौट गईं।

फिर कबीर बोले कि लोई, इनके लिए कुछ मीठा ले आओ।

कबीर जी की पत्नी ने थाली में नमकीन ले आईं और वहां रखकर चली गईं। अब युवक से रहा नहीं गया। उसने कबीर से पूछा कि गुरुदेव, ये सब क्या हो रहा है? आपने मीठा मंगवाया और वह तो नमकीन ले आईं, आपने दोपहर में लालटेन मंगाई और वह बिना कुछ कहे ले आईं?

कबीरदास जी ने मुस्कुराकर जवाब दिया कि देखो, तुमने गौर किया होगा कि मेरी पत्नी ने न तो लालटेन लाने पर बहस की और न ही मीठे की जगह नमकीन लाने पर कोई बहाना बनाया। मैंने लालटेन मंगाई, जबकि वह समय उसका नहीं था, फिर भी वह लेकर आ गईं। मैंने मीठा लाने को कहा, लेकिन हो सकता है घर में इस समय मीठा न हो तो उसने नमकीन दे दिया। मैंने कोई सवाल नहीं उठाया और उसने भी कोई बहस नहीं की।

गृहस्थ जीवन में यदि हर छोटी बात पर तर्क या बहस होने लगे तो रिश्ते टूटने में देर नहीं लगती। अगर दोनों एक-दूसरे को समझने की कोशिश करें, धैर्य रखें और बहस को टालें तो जीवन सहज, सुखी और मधुर हो सकता है, आपसी प्रेम बना रह सकता है।

संत कबीर की सीख

संत कबीर के इस प्रसंग की सीख न केवल विवाहित जीवन के लिए, बल्कि किसी भी रिश्ते या टीम वर्क के लिए अत्यंत उपयोगी है। पारिवारिक जीवन में, विशेषकर पति-पत्नी के बीच, दो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं:

धैर्य: हर बात का तत्काल उत्तर देना जरूरी नहीं होता। कई बार चुप रह जाना, समझना और सोच-समझकर प्रतिक्रिया देना ज्यादा प्रभावी होता है।

बहस से बचाव: एक छोटी सी बहस भी भावनात्मक दूरी बढ़ा सकती है। आवश्यक नहीं कि हर बार अपनी बात को सही साबित किया जाए। बहस से बचाव ही रिश्तों को मजबूती देता है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जीवन की जटिल समस्याओं का हल अक्सर सरल व्यवहार में छिपा होता है। घर-परिवार में, विशेषकर दांपत्य जीवन में, यदि हम तर्क की जगह समझ और आरोप की जगह संवाद को स्थान दें तो न केवल समस्याएं सुलझेंगी, बल्कि जीवन में स्थायी शांति भी बनी रहेगी।

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