धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 580

एक संत के मित्र का परिवार फलियों को बेचकर अपना गुजारा चलाता था। संत ने देखा कि उनका मित्र और उसका परिवार उस पेड़ पर पूरी तरह निर्भर हो गया है, जिससे फलियां मिलती थी। उन्हें चिंता हुई कि वे कभी भी कुछ नया करने या अपनी स्थिति सुधारने का प्रयास नहीं करेंगे।

इसलिए, एक रात, संत ने चुपके से वह पेड़ काट दिया। जब सुबह उनके मित्र ने देखा कि पेड़ कट गया है, तो वह बहुत दुखी हुआ। संत ने उसे समझाया कि यह कदम उन्होंने उसके भले के लिए उठाया है। संत ने कहा कि वह पेड़ पर निर्भर रहने की बजाय, कुछ और काम करके अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करे।

इसके बाद मित्र को घर से बाहर जाकर काम करना आरंभ कर दिया। जैसे ही घर से बाहर जाकर काम करना आरंभ किया उसकी आजीविका में काफी सुधार आने लगा। रोजाना अलग—अलग प्रकार के लोगों से मेल—मुलाकात होती तो नए—नए विचार आते। इन नए विचारों पर परिवार के साथ चर्चा करके अपना व्यापार बढ़ाता चला गया। ऐसे करते हुए वह काफी धनवान बन गया।

अब संत ने उस मित्र से पूछा, उस फलियों के पेड़ के कट जाने का अब भी दुख है क्या?? तो उस मित्र ने कहा—यदि वो पेड़ आज भी होता तो वह कभी भी घर को छोड़कर बाहर नहीं निकलता और ना ही व्यापार करने के बारे में सोचता। वह पूरा जीवन महज उन फलियों तक ही सीमित रखता।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कभी-कभी, हमें अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने की आवश्यकता होती है ताकि हम विकास कर सकें और अपने जीवन को बेहतर बना सकें।

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ओशो, काहे होत अधीर (पलटू), प्रवचन 12