धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 623

एक विशाल और भव्य राजमहल में राजा प्रताप सिंह रहते थे। उनका राजमहल दूर-दूर तक अपनी शान-ओ-शौकत के लिए मशहूर था। एक दिन सुबह-सुबह महल के मुख्य दरवाजे पर एक साधु आया। उसने साधारण-सा भगवा वस्त्र पहना था और हाथ में एक लकड़ी की छड़ी थी। साधु ने दरवाजे पर खड़े पहरेदार से कहा, “भाई, जरा अंदर जाकर राजा को बता देना कि उनका छोटा भाई उनसे मिलने आया है।”

पहरेदार चौंक गया। उसने साधु को ऊपर से नीचे तक देखा और सोच में पड़ गया, “ये साधु तो राजा का भाई कैसे हो सकता है? राजा प्रताप सिंह का तो कोई भाई है ही नहीं! कहीं ये कोई ठग तो नहीं?” फिर उसने सोचा, “शायद कोई पुराना रिश्तेदार हो, जिसने सन्यास ले लिया हो।” कुछ देर सोचने के बाद पहरेदार ने अंदर जाकर राजा को खबर दी, “महाराज, बाहर एक साधु आए हैं। कह रहे हैं कि वो आपके भाई हैं और आपसे मिलना चाहते हैं।”

यह सुनकर राजा प्रताप सिंह हल्के से मुस्कुराए और बोले, “अच्छा, उन्हें अंदर भेजो। देखें तो सही, ये भाई कहाँ से आया है।” साधु अंदर आया और राजा को प्रणाम करके बड़े प्यार से बोला, “कैसे हो, भैया? बहुत दिनों बाद तुमसे मिलने आया हूँ।” राजा ने भी उतने ही प्यार से जवाब दिया, “मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ, साधु बाबा। तुम बताओ, तुम्हारा हाल-चाल कैसा है? इतने दिनों बाद कैसे याद आया?”

साधु ने गहरी साँस ली और बोला, “भैया, मेरा हाल तो बड़ा बुरा है। जिस महल में मैं रहता हूँ, वो अब बहुत पुराना हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। वहाँ की हालत ऐसी है कि हवा का एक झोंका भी उसे ढहा सकता है। और हाँ, मेरे पास जो 32 नौकर थे, वो भी एक-एक करके मुझे छोड़कर चले गए। अब मैं बिल्कुल अकेला हूँ। कुछ मदद कर दो, भैया।”

राजा ने साधु की बातें ध्यान से सुनीं और मुस्कुराते हुए अपने मंत्री को आदेश दिया, “हमारे इस भाई को 10 सोने के सिक्के दे दो। इससे इनकी कुछ मदद हो जाएगी।” साधु ने सिक्के लेने से पहले कहा, “भैया, 10 सिक्के तो बहुत कम हैं। तुम्हारे जैसे बड़े राजा के पास तो ढेर सारा खजाना होगा। मेरे लिए इतना ही है क्या?”

यह सुनकर राजा हँस पड़े और बोले, “अरे साधु बाबा, अभी के लिए तो इतना ही है। इससे काम चला लो। आगे देखते हैं।” साधु ने सिक्के लिए और चुपचाप वहाँ से चला गया। साधु के जाने के बाद राजा के मंत्रियों के मन में कई सवाल उठने लगे। एक मंत्री ने हिम्मत करके पूछा, “महाराज, हमें तो नहीं पता कि आपका कोई भाई भी है। फिर आपने इस साधु को भाई क्यों माना और इतने सिक्के क्यों दे दिए? कहीं ये कोई ठग तो नहीं था?”

राजा ने शांत भाव से जवाब दिया, “मेरे प्यारे मंत्रियों, साधु ने जो कुछ कहा, वो एक पहेली थी। उसने मुझे भाई इसलिए कहा क्योंकि भाग्य के दो पहलू होते हैं—एक राजा और दूसरा रंक। इस नाते वो मेरा भाई हुआ।”

मंत्री अभी भी हैरान थे। एक ने पूछा, “महाराज, उसने जो पुराना महल और 32 नौकरों की बात कही, उसका क्या मतलब था?”

राजा ने समझाया, “उसके पुराने महल से मतलब उसके बूढ़े शरीर से था। जैसे-जैसे इंसान बूढ़ा होता है, उसका शरीर कमजोर हो जाता है और टूटने लगता है। और 32 नौकरों से उसका मतलब उसके 32 दाँत थे, जो बुढ़ापे में एक-एक करके गिर गए। उसने अपनी बात को पहेली में पेश किया, और मैंने उसकी बात समझ ली।”

मंत्री अभी भी हैरान थे। एक ने पूछा, “महाराज, उसने 10 सिक्के कम क्यों कहे?”

राजा ने हँसते हुए कहा, “वो एक चतुर साधु था। उसने मुझे मेरे ही राजमहल में उलझा दिया। उसका कहने का मतलब था कि मेरे पास इतना बड़ा खजाना है कि मैं उसे सोने से तौल सकता हूँ, लेकिन मैंने उसे सिर्फ 10 सिक्के दिए। वो मुझे मेरी कंजूसी का एहसास दिलाना चाहता था। उसकी बुद्धिमानी देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं उसे अपने दरबार में सलाहकार बनाऊँगा।”

कुछ दिनों बाद राजा ने उस साधु को फिर से बुलवाया। साधु जब दरबार में आया, तो राजा ने उसका स्वागत किया और कहा, “साधु बाबा, तुम्हारी बुद्धिमानी ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे दरबार में सलाहकार बनो। तुम्हारी समझ और चतुराई से मेरा राज्य और बेहतर होगा।”

साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, ये आपकी बड़ी सोच है। मैं आपके दरबार में जरूर आऊँगा, लेकिन मेरा असली धन तो मेरी बुद्धि है, जो मैंने सालों की साधना से कमाया है। मैं इसे आपके और आपके राज्य के लिए इस्तेमाल करूँगा।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, किसी व्यक्ति की बुद्धिमानी का अंदाजा उसके कपड़ों या रूप से नहीं लगाना चाहिए। साधु ने अपनी चतुराई से राजा को प्रभावित किया और साबित कर दिया कि असली धन बुद्धि होती है। हमें हमेशा समझदारी से सोचना चाहिए।

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