धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 625

पुराने समय में एक राजा के पड़ोसी राज्य उसका राजपाठ हड़पना चाहते थे। इसके लिए शत्रु राज्यों ने राजा के दूसरे शत्रुओं को अपने साथ मिला लिया और आक्रमण करने के लिए सेनाएं बुला ली।

सभी शत्रु एक साथ आ गए थे। इस कारण इनकी सेना बहुत बड़ी हो गई थी। जब ये बात राजा को मालूम हुई तो वह घबरा गया। राजा तुरंत ही अपने सेनापति के पास पहुंचा। सेनापति भी डरा हुआ था।

सेनापति ने जब शत्रुओं की सेना के बारे में सुना तो उसने राजा से कहा कि अब हमारी हार तय है। शत्रुओं की संख्या काफी अधिक है। हमारी सेना इनका सामना नहीं कर पाएगी। हमें पहले ही हार मान लेनी चाहिए। ऐसा करने से सभी के प्राण बच जाएंगे।

ये बातें सुनकर राजा की चिंता और बढ़ गई। वह तुरंत ही अपने गुरु के पास पहुंचा। गुरु बहुत विद्वान संत थे। राजा ने गुरु को पूरी बात बताई। संत बोले कि राजन् सबसे पहले तो उस सेनापति को कारगार में डाल देना चाहिए। सेनापति का काम होता है सेना का उत्साह बढ़ाए, लेकिन ये तो सेना का मनोबल ही कमजोर कर रहा है।

राजा ने पूछा कि अगर हम सेनापति को जेल में डाल देंगे तो सेनापति किसे बनाएंगे। गुरु ने कहा कि तुम्हारी सेना का प्रतिनिधित्व मैं करूंगा यानी अब से मैं सेनापति। ये सुनकर राजा को समझ नहीं आया कि क्या करे और क्या न करे? लेकिन, गुरु की बात मानने के अलावा कोई और उपाय नहीं था। राजा ने संत की बात मानकर सेनापति को पद से हटा दिया।

संत सेना के सामने पहुंचे और सेना को लेकर युद्ध लड़ने के लिए चल दिए। रास्ते में एक मंदिर आया तो संत ने कहा कि कुछ देर रुको मैं भगवान से पूछकर आता हूं हमें इस युद्ध में जीत मिलेगी या नहीं।

ये बात सुनकर सेना हैरान थी कि पत्थर की मूर्ति भला कैसे जवाब देगी? लेकिन, संत के बारे में सभी जानते थे कि ये वर्षों से पूजा-पाठ कर रहे हैं तो संभव है कि भगवान से इनकी बातचीत होती होगी।

कुछ देर बाद संत वापस आए और उन्होंने सेना से कहा कि भगवान ने कहा है – अगर आज रात मंदिर में रोशनी दिखाई दे तो समझ लेना कि जीत तुम्हारी सेना की होगी। उस समय शाम होने वाली थी। पूरी सेना रात होने की प्रतीक्षा करने लगी। जब अंधेरा होने लगा तो सभी सैनिकों ने देखा कि मंदिर में रोशनी हो रही है। ये देखते ही पूरी सेना का मनोबल बढ़ गया और सभी कहने लगे कि भगवान भी हमारे साथ है। जीत हमारी ही होगी।

अगले दिन पूरे मनोबल के साथ सेना शत्रुओं पर टूट पड़ी। कुछ ही दिनों में शत्रुओं की सेना की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई। कुछ सैनिक मैदान छोड़कर भाग गए और कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह राजा की सेना युद्ध जीत गई।

युद्ध जीतने के बाद सेना अपने राज्य लौट रही थी तो रास्ते में वही मंदिर वापस आया। संत ने सैनिकों को बताया कि उस दिन मैंने यहां एक दीपक जलाया। दिन होने की वजह से दीपक की रोशनी दिखाई नहीं दी, लेकिन अंधेरा होने पर दीपक की रोशनी दिखने लगी तो आप सभी का मनोबल बढ़ गया। और, इसी मनोबल से हमें जीत मिली है।

धमप्रेमी सुंदरसाथ जी, मन में उत्साह रहेगा तो कोई काम मुश्किल नहीं है। बड़े-बड़े काम भी मनोबल के साथ करने पर सफल हो सकते हैं। इसीलिए हमेशा सकारात्मक रहें और नकारात्मक विचारों से बचें।

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