एक छोटा सा गाँव था—नाम था रामपुर। वहाँ एक गरीब किसान रहता था—मोहन। लोगों से खेत ठेके पर लेकर काम करता। मेहनती तो बहुत था, पर किस्मत जैसे उसके हर कदम पर मज़ाक करती थी।
कभी फसल सूख जाती, कभी बैल बीमार पड़ जाते, कभी बारिश इतनी होती कि खेत बह जाते। गाँव के लोग कहते— “मोहन, छोड़ दे खेती! तेरी किस्मत में सुख नहीं।”
पर मोहन बस मुस्कुरा देता— “किस्मत साथ दे या न दे, मैं मेहनत नहीं छोड़ूँगा। भगवान देख रहे हैं।”
एक साल ऐसा आया जब सब कुछ खत्म हो गया। घर में अन्न का एक दाना नहीं बचा। पत्नी और बच्चे भूख से तड़प रहे थे। मोहन रात को आकाश की ओर देख कर बोला— “प्रभु! अगर तू है तो बता, क्यों मेरी सुनता नहीं?”
गांव में एक दिन एक वृद्ध संत आए। मोहन में अपनी समस्या बताई तो संत बोले— “मोहन, जब नाव किनारे से टूट जाती है, तभी आदमी तैरना सीखता है। तू चलता रह, प्रभु तेरे साथ हैं।”
सुबह उठकर मोहन ने देखा—गाँव के बाहर सड़क बन रही थी। उसने मजदूरी शुरू कर दी। दिन-रात ईमानदारी से काम करता रहा। कुछ महीनों में उसने थोड़ा धन जोड़ा और फिर से खेत ठेके पर लिया।
इस बार, जैसे किस्मत पलट गई। मौसम ठीक रहा, मेहनत रंग लाई, फसल खूब आई। गाँव के लोग हैरान थे— “अरे मोहन, तेरी किस्मत तो बदल गई!”
मोहन मुस्कुराया— “किस्मत तो वही है भाई, बदला तो बस मेरा विश्वास। जब किस्मत ने साथ छोड़ दिया, तब ईश्वर ने मेरे भीतर हिम्मत जगाई। वही सच्चा साथ था।”
उस दिन गाँव के संत ने सभा में कहा— “जब भाग्य सोता है, तब भगवान जागते हैं। जो टूटे नहीं, उसी की नाव किनारे लगती है।”
संदेश:
जब किस्मत साथ न दे, तब समझो—ईश्वर हमें अपने बल से जीना सिखा रहे हैं। किस्मत हमें गिरा सकती है, पर ईश्वर कभी नहीं छोड़ते।