धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 680

एक छोटे से गाँव में एक युवक रहता था — पढ़ा-लिखा, तर्कशील, और हर बात को अपनी बुद्धि की कसौटी पर परखने वाला।
वह अक्सर मंदिर के बाहर बैठकर भक्तों को देखता और मन ही मन हँस देता — “ये लोग किसे ढूँढ रहे हैं? अगर भगवान है, तो दिखते क्यों नहीं?”

एक दिन उसकी यही बेचैनी उसे गाँव के प्रसिद्ध संत के आश्रम तक ले गई।
वह संत के सामने पहुँचा और बिना झिझक बोला— “गुरुदेव, सब कहते हैं कि परमात्मा हर जगह हैं। अगर वो सच में हैं, तो वो दिखते क्यों नहीं? क्या उन्होंने खुद को छिपा लिया है?”

संत ने उसकी ओर स्नेह से देखा। फिर बोले— “पुत्र, तेरे प्रश्न में जिज्ञासा है, लेकिन साथ में अहंकार भी। चल, तेरा प्रश्न मैं आज ही मिटा देता हूँ। मेरे साथ तालाब तक चल।”

दोनों तालाब के किनारे पहुँचे। संत ने युवक से कहा—“इस लोटे में पानी भर ला।” युवक ने पानी भरकर लाया।

फिर संत बोले— “अब इसमें यह मुट्ठी भर नमक डाल।” युवक ने नमक डाल दिया।

“अच्छा, अब देख, नमक कहाँ गया?” युवक बोला— “गुरुदेव, दिखाई नहीं दे रहा, घुल गया है।”

संत मुस्कराए— “ठीक है, अब इस पानी को ज़रा चख।” युवक ने पानी चखा और तुरंत बोला—“अरे, पानी तो खारा हो गया!”

संत बोले— “यही बात परमात्मा के बारे में भी है, पुत्र। जैसे नमक पानी में घुलकर दिखाई नहीं देता, लेकिन उसका स्वाद हर बूँद में होता है, वैसे ही परमात्मा भी सृष्टि के हर कण में व्याप्त हैं। उन्हें देखने के लिए आँखें नहीं, अनुभूति का मन चाहिए।”

फिर संत ने उसकी आँखों में देखा और कहा— “जब तू प्रेम से किसी की मदद करेगा, जब तू किसी को क्षमा करेगा, जब तू सत्य बोलेगा—तू देखेगा, उसी पल परमात्मा तुझमें ही प्रकट होंगे।”

युवक के भीतर कुछ टूट गया—अहंकार, प्रश्न, संदेह सब जैसे बह गए। वह संत के चरणों में झुक गया और बोला— “गुरुदेव, अब मैं समझ गया… परमात्मा कहीं बाहर नहीं, वो तो मेरे ही भीतर थे, बस मैं अंधा था।”

संत मुस्कराए— “सही कहा पुत्र, परमात्मा को पाने के लिए देखने की नहीं, महसूस करने की दृष्टि चाहिए।”

उस दिन के बाद वह युवक रोज़ मंदिर नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के हृदय में परमात्मा को देखने लगा। और सच में — उसके जीवन में एक अनोखी शांति उतर आई।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मंदिर महज ईश्वर को जानने का स्थान है। मंदिर में जाकर हम अपनी श्रद्धा, विश्वास और आस्था को बलवान बना सकते हैं। मंदिर में जाकर हम मा​नसिक रुप से ईश्वर के समक्ष जा सकते हैं। लेकिन ईश्वर को पाना है तो अपने भीतर ही उतराना होगा। ईश्वर सदा हमारे पास रहता है। उसे बस महसूस करने की आवश्यकता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—224

परमहंस संत शिरोमणि डा. स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 732

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 725

Jeewan Aadhar Editor Desk